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"स्वप्न / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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भोर... <br>
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बिना चौंके पाता हूँ कि जाग गया हूँ।
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भोर...
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21:48, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

धुएँ का काला शोर:
भाप के अग्निगर्भ बादल:
बिना ठोस रपटन में उगते, बढ़ते, फूलते
अन्तहीन कुकुरमुत्ते,
न-कुछ की फाँक से झाँक-झाँक, झुक कर
झपटने को बढ़ रहे भीमकाय कुत्ते।
अग्नि-गर्भ फैल कर सब लील लेता है।
केवल एक तेज—एक दीप्ति:
न उस का, न सपने का कोई ओर-छोर:
बिना चौंके पाता हूँ कि जाग गया हूँ।
भोर...