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"काँच के पीछे की मछलियाँ / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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ये जो कोई मछलियाँ <br>
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उनमें से किसी एक को <br>
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अभी हमीं में से कोई खा जाएगा, <br>
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जल्दी से पैसे चुकाएगा-- <br>
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चला जाएगा। <br> <br>
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पैसे खनकाएगा,
रुपए की परचियाँ खिसलाएगा, <br>
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रुपए की परचियाँ खिसलाएगा,
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बिना किसी जल्दी के समेटेगा, जेब में सरकाएगा
दाम देगा नहीं, वसूलेगा <br>
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दाम देगा नहीं, वसूलेगा
और फिर हम सब को--एक-एक को--एक साथ <br>
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और फिर हम सब को—एक-एक को—एक साथ
और बड़े इत्मीनान से धीरे-धीरे खाएगा <br>
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खाता चला जाएगा, <br>
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खाता चला जाएगा,
वैसी ही बे-झपक आँखों से ताकता हुआ <br>
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वैसी ही बे-झपक आँखों से ताकता हुआ
जैसी से ताकती हुई ये मछलियाँ <br>
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जैसी से ताकती हुई ये मछलियाँ
स्वयं खाई जाती हैं। <br><br>
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स्वयं खाई जाती हैं।  
  
ज़िन्दगी के रेस्त्राँ में यही आपसदारी है <br>
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ज़िन्दगी के रेश्त्राँ में यही आपसदारी है   <!--- मूल किताब में रेश्त्राँ लिखा है, रेस्त्राँ नहीं--->
रिश्ता-नाता है-- <br>
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रिश्ता-नाता है— 
 
कि कौन किस को खाता है।
 
कि कौन किस को खाता है।
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21:51, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

उधर उस काँच के पीछे पानी में
ये जो कोई मछलियाँ
बे-आवाज़ खिसलती हैं
उनमें से किसी एक को
अभी हमीं में से कोई खा जाएगा,
जल्दी से पैसे चुकाएगा—
चला जाएगा।

फिर इधर इस काँच के पीछे कोई दूसरा आएगा,
पैसे खनकाएगा,
रुपए की परचियाँ खिसलाएगा,
बिना किसी जल्दी के समेटेगा, जेब में सरकाएगा
दाम देगा नहीं, वसूलेगा
और फिर हम सब को—एक-एक को—एक साथ
और बड़े इत्मीनान से धीरे-धीरे खाएगा
खाता चला जाएगा,
वैसी ही बे-झपक आँखों से ताकता हुआ
जैसी से ताकती हुई ये मछलियाँ
स्वयं खाई जाती हैं।

ज़िन्दगी के रेश्त्राँ में यही आपसदारी है
रिश्ता-नाता है—
कि कौन किस को खाता है।