अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते | अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते | ||
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और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते | और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते | ||
− | + | ऐसा क्यों है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी | |
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अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी | अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी | ||
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क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं | क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं | ||
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क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं | क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं | ||
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परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे | परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे | ||
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क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं | क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं | ||
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क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर, राठी | क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर, राठी | ||
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हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी | हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी | ||
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पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी | पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी | ||
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कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी | कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी | ||
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20:48, 22 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते
और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते
ऐसा क्यों है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी
अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी
क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं
क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं
परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे
क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं
क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर, राठी
हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी
पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी
कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी