भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुनो! / व्लदीमिर लेनिन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 44: पंक्ति 44:
 
कम से कम एक सितारा तो पहुँचे !
 
कम से कम एक सितारा तो पहुँचे !
 
   
 
   
'''अंग्रेजी से अनुवाद -- नीता पोरवाल'''
+
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद -- नीता पोरवाल'''
 
</poem>
 
</poem>

13:21, 10 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

सुनो!
टिमटिमाते हैं सितारे अगर
यानी -- किसी को जरूरत है इनकी
यानी -- कोई तो है जो बन जाना चाहता है इन जैसा
किसी को तो भरोसा है
रोशनी की भव्य बौछार पर
 
भरी दुपहरिया
धूल भरे बवण्डर में
अकुलाता घूमता वह
फूट-फूट कर रो पड़ता है ईश्वर के समक्ष
इस डर से कि पहले ही हो चुकी है बहुत देर
चूमकर ईश्वर का बलिष्ठ हाथ
करना चाहता है एक वादा उससे
ज़मीन पर एक सितारा होगा ज़रूर ऐसा
वह लेता है क़सम
क्योंकि बगैर सितारे के
इस अग्निपरीक्षा में सफल हो पाना मुमकिन नहीं
 
बाद में
ऊपर से शान्त लेकिन
मन ही मन दुखी हो भटकता है चारों ओर
 
भरोसा देता सबको
कि अब
सही है सब कुछ
डरने की कोई ज़रूरत नही तुम्हें
सुना तुमने?
 
सुनो,
टिमटिमाते हैं सितारे अगर
यानी -- सचमुच किसी को ज़रूरत है इनकी
यानी -- बहुत जरूरी है
कि हर शाम
उन तमाम ऊँची इमारतों के शिखर तक
कम से कम एक सितारा तो पहुँचे !
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद -- नीता पोरवाल