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"वक़्त करता जो वफ़ा / इंदीवर" के अवतरणों में अंतर

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गरज-गरज शोर करत काली घटा, जिया न लागे हमार।
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<poem>वक़्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते
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हम भी ग़ैरों की तरह आप को प्यारे होते
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वक़्त करता जो वफ़ा ...
  
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अपनी तक़दीर में पहले ही कूछ तो ग़म हैं
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और कुछ आप की फ़ितरत में वफ़ा भी कम है
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वरन जीती हुई बाज़ी तो ना हारे होते
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वक़्त करता जो वफ़ा ...
  
बिजली बन कर चमकती मेरे मन की आग।
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हम भी प्यासे हैं ये साक़ी को बता भी न सके
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सामने जाम था और जाम उठा भी न सके
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काश ग़ैरते-महफ़िल के न मारे होते
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वक़्त करता जो वफ़ा ...
  
आहें मेरी बन गईं न्यारे-न्यारे राग।।
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दम घुटा जाता है सीने में फिर भी ज़िंदा हैं
 
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तुम से क्या हम तो ज़िंदगी से भी शर्मिन्दा हैं
सावन की भीगी है रात, सखी सुन री मेरी तू बात।
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मर ही जाते जो यादों के सहारे होते
 
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वक़्त करता जो वफ़ा ...</poem>
है नैनों में आँसुओं की धार, जिया लागे हमार।। गरज...
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मेरे आँसू बरसते लोग कहें बरसात।
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पल-पल आवत याद है पिया मिलन की रात।।
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कोयल की दरदीली तान सखि दिल में मारत बान।
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अब कैसे हो मुझ को करार, जिया न लागे हमार।। गरज...
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01:43, 1 मार्च 2010 के समय का अवतरण

वक़्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते
हम भी ग़ैरों की तरह आप को प्यारे होते
वक़्त करता जो वफ़ा ...

अपनी तक़दीर में पहले ही कूछ तो ग़म हैं
और कुछ आप की फ़ितरत में वफ़ा भी कम है
वरन जीती हुई बाज़ी तो ना हारे होते
वक़्त करता जो वफ़ा ...

हम भी प्यासे हैं ये साक़ी को बता भी न सके
सामने जाम था और जाम उठा भी न सके
काश ग़ैरते-महफ़िल के न मारे होते
वक़्त करता जो वफ़ा ...

दम घुटा जाता है सीने में फिर भी ज़िंदा हैं
तुम से क्या हम तो ज़िंदगी से भी शर्मिन्दा हैं
मर ही जाते जो न यादों के सहारे होते
वक़्त करता जो वफ़ा ...