भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बिन्दु / भूपेन हजारिका" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKAnooditRachna
 
{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=भूपेन हजारिका
+
|रचनाकार= भूपेन हजारिका  
|संग्रह=कविताएँ / भूपेन हजारिका
+
|संग्रह=कविताएँ / भूपेन हजारिका  
 
}}
 
}}
 
[[Category:असमिया भाषा]]
 
[[Category:असमिया भाषा]]
 
+
<poem>
 
+
 
+
 
निंदिया बिन रैना -
 
निंदिया बिन रैना -
 
 
कोमल चांद पिघला
 
कोमल चांद पिघला
 
 
मुंह अंधेरे ओस की बूंदें उतरी
 
मुंह अंधेरे ओस की बूंदें उतरी
 
 
मेघ को चीरते हुए राजहंस
 
मेघ को चीरते हुए राजहंस
 
 
सूरज के सातों
 
सूरज के सातों
 
 
घोड़ों की मंथर गति की आवाज
 
घोड़ों की मंथर गति की आवाज
 
 
मेरी चेतना में प्रवेश करते हैं
 
मेरी चेतना में प्रवेश करते हैं
 
 
सीने का स्पर्श करता है
 
सीने का स्पर्श करता है
 
 
एक नया गहरा सागर
 
एक नया गहरा सागर
 
 
लहर विहीन
 
लहर विहीन
 
 
जिसकी एक बिन्दु
 
जिसकी एक बिन्दु
 
 
हौले से लटक रही है
 
हौले से लटक रही है
 
 
मेरे आंगन में
 
मेरे आंगन में
 
 
झड़े हुए
 
झड़े हुए
 
 
रातरानी की सफेद पंखुड़ी पर
 
रातरानी की सफेद पंखुड़ी पर
 
 
शायद शरत आ गया
 
शायद शरत आ गया
 
 
एक गुप्तांग
 
एक गुप्तांग
 
 
दो स्तन
 
दो स्तन
 
 
कुछ अल्टरनेट सेक्स
 
कुछ अल्टरनेट सेक्स
 
 
छिप न सके, इसके लिए
 
छिप न सके, इसके लिए
 
 
डिजाइनर की तमाम कोशिश
 
डिजाइनर की तमाम कोशिश
 
 
हर आदमी एक द्वीप की तरह
 
हर आदमी एक द्वीप की तरह
 
 
एके फोर्टी सेवन जिन्दाबाद
 
एके फोर्टी सेवन जिन्दाबाद
 
 
आदिम छन्द हेड हंटर का।
 
आदिम छन्द हेड हंटर का।
  
पंक्ति 59: पंक्ति 34:
  
 
जीवन जाए
 
जीवन जाए
 
+
जड़हीन शून्यता में।
जडहीन शून्यता में।
+
 
+
 
मुमकिन हो तो टिकट कटा लें
 
मुमकिन हो तो टिकट कटा लें
 
 
मंगल ग्रह पर जाने के लिए
 
मंगल ग्रह पर जाने के लिए
 
 
मनुष्य की खोज में
 
मनुष्य की खोज में
 
 
मनुष्य की खोज में
 
मनुष्य की खोज में
 +
</poem>

01:57, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: भूपेन हजारिका  » संग्रह: कविताएँ
»  बिन्दु

निंदिया बिन रैना -
कोमल चांद पिघला
मुंह अंधेरे ओस की बूंदें उतरी
मेघ को चीरते हुए राजहंस
सूरज के सातों
घोड़ों की मंथर गति की आवाज
मेरी चेतना में प्रवेश करते हैं
सीने का स्पर्श करता है
एक नया गहरा सागर
लहर विहीन
जिसकी एक बिन्दु
हौले से लटक रही है
मेरे आंगन में
झड़े हुए
रातरानी की सफेद पंखुड़ी पर
शायद शरत आ गया
एक गुप्तांग
दो स्तन
कुछ अल्टरनेट सेक्स
छिप न सके, इसके लिए
डिजाइनर की तमाम कोशिश
हर आदमी एक द्वीप की तरह
एके फोर्टी सेवन जिन्दाबाद
आदिम छन्द हेड हंटर का।

बैलून/मूल्यबोध/उपभोक्तावाद

जीवन जाए
जड़हीन शून्यता में।
मुमकिन हो तो टिकट कटा लें
मंगल ग्रह पर जाने के लिए
मनुष्य की खोज में
मनुष्य की खोज में