भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"समय का पहिया (कविता) / गोरख पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: समय का पहिया चले रे साथी समय का पहिया चले फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग ब...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
समय का पहिया चले रे साथी  
+
{{KKGlobal}}
समय का पहिया चले  
+
{{KKRachna
फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी
+
|रचनाकार=गोरख पाण्डेय
समय का पहिया चले
+
|संग्रह=स्वर्ग से बिदाई / गोरख पाण्डेय
रात और दिन पल पल छिन  
+
}}
आगे बढ़ता जाय
+
 
तोड़ पुराना नये सिरे से  
+
समय का पहिया चले रे साथी <br>
सब कुछ गढ़ता जाय
+
समय का पहिया चले <br>
पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथी
+
फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी<br>
समय का पहिया चले
+
समय का पहिया चले<br>
उठा आदमी जब जंगल से  
+
रात और दिन पल पल छिन <br>
अपना सीना ताने
+
आगे बढ़ता जाय<br>
रफ़्तारों को मुट्ठी में कर  
+
तोड़ पुराना नये सिरे से <br>
पहिया लगा घुमाने
+
सब कुछ गढ़ता जाय<br>
मेहनत के हाथों से  
+
पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथी<br>
आज़ादी की सड़के ढले रे साथी
+
समय का पहिया चले<br>
समय का पहिया चले (अधूरी है)
+
उठा आदमी जब जंगल से <br>
 +
अपना सीना ताने<br>
 +
रफ़्तारों को मुट्ठी में कर <br>
 +
पहिया लगा घुमाने<br>
 +
मेहनत के हाथों से <br>
 +
आज़ादी की सड़के ढले रे साथी<br>
 +
समय का पहिया चले <br>

22:29, 13 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

समय का पहिया चले रे साथी
समय का पहिया चले
फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी
समय का पहिया चले
रात और दिन पल पल छिन
आगे बढ़ता जाय
तोड़ पुराना नये सिरे से
सब कुछ गढ़ता जाय
पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथी
समय का पहिया चले
उठा आदमी जब जंगल से
अपना सीना ताने
रफ़्तारों को मुट्ठी में कर
पहिया लगा घुमाने
मेहनत के हाथों से
आज़ादी की सड़के ढले रे साथी
समय का पहिया चले