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"सच का हाथ / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर
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ये खिंचे हुए | ये खिंचे हुए | ||
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उग्र चेहरे | उग्र चेहरे | ||
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चिल्लाते | चिल्लाते | ||
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मनुष्यता खो चुकी | मनुष्यता खो चुकी | ||
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अपनी ढिबरी मदमस्त अंधकार में | अपनी ढिबरी मदमस्त अंधकार में | ||
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बस टटोलती एक क्रूर धरातल को, | बस टटोलती एक क्रूर धरातल को, | ||
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कि एक हाथ बढ़ा कहीं से | कि एक हाथ बढ़ा कहीं से | ||
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जैसे मेरी ओर | जैसे मेरी ओर | ||
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आतंक से भीगे पहर में | आतंक से भीगे पहर में | ||
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कविता का स्पर्श, | कविता का स्पर्श, | ||
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मैं जागा दुस्वप्न से | मैं जागा दुस्वप्न से | ||
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आँखें मलता | आँखें मलता | ||
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पर मिटता नहीं कुछ जो देखा | पर मिटता नहीं कुछ जो देखा | ||
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17:45, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
ये आवाजें
ये खिंचे हुए
उग्र चेहरे
चिल्लाते
मनुष्यता खो चुकी
अपनी ढिबरी मदमस्त अंधकार में
बस टटोलती एक क्रूर धरातल को,
कि एक हाथ बढ़ा कहीं से
जैसे मेरी ओर
आतंक से भीगे पहर में
कविता का स्पर्श,
मैं जागा दुस्वप्न से
आँखें मलता
पर मिटता नहीं कुछ जो देखा
रचनाकाल: 7.2.2006