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"आशा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | नीचे अवाँछित खरपतवार के गाँछें | ||
+ | भ्रान्तियों की शक्ल में | ||
+ | जिंदगी में फैले हैं | ||
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+ | हक़ीक़त को मानने वाले | ||
+ | मित्रगण जानते हैं | ||
+ | दुविधा से निकलकर | ||
+ | आशा का एक शब्द | ||
+ | आज भी | ||
+ | अपनी चमक में | ||
+ | ज्यों का त्यों है | ||
+ | जिस पर दुनिया टिकी है | ||
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18:01, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
बहुत दूर मत जाइये
अपनी आँखों में
झाँक कर देखिये
रेगिस्तान के पीछे
झरने की आवाज़
सुनायी देगी
नमी के आसपास
जमी मोटी केाई
मामूली नहीं
जहाँ कोमल
मिट्टी की
पीठ पर
पहाड़ उगे हैं और
नीचे अवाँछित खरपतवार के गाँछें
भ्रान्तियों की शक्ल में
जिंदगी में फैले हैं
हक़ीक़त को मानने वाले
मित्रगण जानते हैं
दुविधा से निकलकर
आशा का एक शब्द
आज भी
अपनी चमक में
ज्यों का त्यों है
जिस पर दुनिया टिकी है