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"प्रेमगीत / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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फीके पड़ गये
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नीरस और बेमतलब
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कोई उत्तेजना नहीं
  
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सूरज का नाम ओठों पर
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ठंड की तासीर दे जाता है
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कोई चुनचुनाहट नहीं होती
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नतीज़ाः
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फल आसानी से मिले तो
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कल लौटता नहीं
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पर, भूलता भी नहीं
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वह निगाह जो चुप है
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कभी उठती तो
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सिर्फ़ सड़क पर
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और रुकती तो
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कलाई में  बँधी घड़ी पर
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समय कितना बदल गया
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किसी ने ठीक कहा है
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प्रेमगीत रोज़ गाये नहीं जाते
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मेहमान देर तक टिकाये नहीं जाते
 
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18:04, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

शब्द चलते-चलते घिस गये
प्राण रस में डूबे
उल्लास और विलास के सम्बोधन
फीके पड़ गये
नीरस और बेमतलब
कोई उत्तेजना नहीं

सूरज का नाम ओठों पर
ठंड की तासीर दे जाता है
और चमड़ी में
कोई चुनचुनाहट नहीं होती
नतीज़ाः
फल आसानी से मिले तो
बेकार-बेस्वाद और फ़ीका लगे

कल लौटता नहीं
पर, भूलता भी नहीं
वह निगाह जो चुप है
कभी उठती तो
सिर्फ़ सड़क पर
और रुकती तो
कलाई में बँधी घड़ी पर
समय कितना बदल गया

किसी ने ठीक कहा है
प्रेमगीत रोज़ गाये नहीं जाते
मेहमान देर तक टिकाये नहीं जाते