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"रोशनी का क़त्ल / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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सभ्य लोगेां का इलाका
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सब शांति है
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न कोई रोकने वाला
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जिसे निष्पाप समझा था
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हमारे बीच में का़तिल
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हमीं उससे रहे गाफ़िल
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अब उसकी साजिशें देखो
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कभी दरपन समझता है
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कभी शीशा समझता है
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कभी बारूद का गोला
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न कोई पूछने वाला
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न कोई जाँचने वाला
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जिसे प्रतिरोध करना था
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सुरक्षा के बड़े दावे
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जहाँ ज्वालामुखी लावे
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हुए जो हादसे देखेा
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अगर पर्दा उठा दें तों
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अगर चेहरा दिखा दें तो
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सभी हैरान रह जायें
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जो सच्चाई बता दें तो
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न कोई सोचने वाला
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न कोई समझने वाला
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जिसे बदलाव लाना था
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तलबग़ारों में शामिल है
 
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22:26, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

रोशनी का क़त्ल
सबके सामने
दिन के उजाले में हुआ
सब मौन थे
लोग अब अनजान बनकर
पूछते हैं
जुल्म जो करके गये
वो कौन थे

कौन बोले
सभ्य लोगेां का इलाका
दूसरों का मामला
सब शांति है
न कोई रोकने वाला
न कोई टोकने वाला
जिसे निष्पाप समझा था
गुनहग़ारों में शामिल है

हमारे बीच में का़तिल
हमीं उससे रहे गाफ़िल
अब उसकी साजिशें देखो
कभी दरपन समझता है
कभी शीशा समझता है
कभी बारूद का गोला

न कोई पूछने वाला
न कोई जाँचने वाला
जिसे प्रतिरोध करना था
मददग़ारों में शामिल है

सुरक्षा के बड़े दावे
जहाँ ज्वालामुखी लावे
हुए जो हादसे देखेा
अगर पर्दा उठा दें तों
अगर चेहरा दिखा दें तो
सभी हैरान रह जायें
जो सच्चाई बता दें तो
न कोई सोचने वाला
न कोई समझने वाला
जिसे बदलाव लाना था
तलबग़ारों में शामिल है