"गाँधी / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | गाँधी है दो अक्तूबर | ||
+ | यानी दफ़तरों में मनाया जाने वाला | ||
+ | सरकारी त्योहार | ||
+ | यानी पूरे देश में | ||
+ | पूरे एक दिन की छुट्टी | ||
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+ | अजी गाँधी | ||
+ | दो का पिता बनने में खीस निपुर आती है | ||
+ | पूरे राष्ट्र का पिता बनने में | ||
+ | तुम्हें क्या सूझा था | ||
+ | गाँधी मुझे तुमसे पूरी हमदर्दी है | ||
+ | तुम एक अच्छे इन्सान थे-और महात्मा भी | ||
+ | लेकिन सूझ-बूझ से तुम्हें | ||
+ | काम लेना नहीं आया | ||
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+ | गाँधी जब तुम दुनिया से जाने लगे थे | ||
+ | तो अपने साथ अपना नाम क्यों नहीं ले गये | ||
+ | क्यों छोड़ दिया इस बेचारे को यहाँ | ||
+ | गाँधी, तुम गाँधी होकर | ||
+ | उतने गाँधी नहीं बने | ||
+ | जितने गैर गाँधी | ||
+ | गाँधी हो गये | ||
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22:37, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
गाँधी है एक लफ्ज
जिसे कुछ गैर गाँधियों ने
पहले इस्तेमाल किया
फिर शुरू हुआ गाँधी का चलन
सिक्के की तरह
इस हाथ से-उस हाथ
उस हाथ से-उस हाथ
गाँधी है एक खद्दर
यानी हाथ का बुना कपड़ा
जुलाहे के पसीना का रेशा
आस्थाओं का इतना बड़ा तहखाना निकला
जिसमें छुप गये एक से एक
भारी-भरकम पेट वाले लोग
गाँधी है एक चरखा
जो अंगरेजों के बाद भी
देश में चलता रहा
डेमोक्रेसी में चुनाव चिन्ह के रूप में
और ब्यूरोक्रेसी में विकास के नाम पर पंडाल में
आलम यह हुआ कि चरखा हो गया गाँव-गाँव
और अब बुधिराम की समझ में आ गया
गाँधी का ‘हरिजन’ शब्द उसे नहीं चाहिए
गाँधी है एक सत्य
जो राजघाट से लेकर इजलासों तक
बदस्तूर रोज़-बा-रोज़ बोला जाता है
और पच जाते हैं हज़ारों झूठ
गाँधी है एक अहिंसा
जिसके सीने पर लगे गोलियों के निशान
बराबर फैलते जा रहे हैं
गाँधी है दो अक्तूबर
यानी दफ़तरों में मनाया जाने वाला
सरकारी त्योहार
यानी पूरे देश में
पूरे एक दिन की छुट्टी
अजी गाँधी
दो का पिता बनने में खीस निपुर आती है
पूरे राष्ट्र का पिता बनने में
तुम्हें क्या सूझा था
गाँधी मुझे तुमसे पूरी हमदर्दी है
तुम एक अच्छे इन्सान थे-और महात्मा भी
लेकिन सूझ-बूझ से तुम्हें
काम लेना नहीं आया
गाँधी जब तुम दुनिया से जाने लगे थे
तो अपने साथ अपना नाम क्यों नहीं ले गये
क्यों छोड़ दिया इस बेचारे को यहाँ
गाँधी, तुम गाँधी होकर
उतने गाँधी नहीं बने
जितने गैर गाँधी
गाँधी हो गये