"बड़ी बात / शैलेन्द्र चौहान" के अवतरणों में अंतर
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02:25, 7 मई 2008 के समय का अवतरण
तुम हो
एक अच्छे इंसान
डिब्बे में बन्द रखो
अपनी कविताएँ
मुश्किल है थोड़ा
अच्छा कवि बन पाना
कुछ तिकड़म
चमचागिरी थोड़ी और
अच्छा पी. आर.
नहीं तुम्हारे बस का
कविताएँ अपनी
डिब्बे में बंद रखो
आलोचकों को देनी होती
सादर केसर-कस्तूरी
संपादक को
मिलना होता कई बार
बाँधो झूठी तारीफ़ों के पुल पहले
फिर जी हुजूरी और सलाम
लाना दूर की कौड़ी कविताओं में
असहज बातें,
कुछ उलटबासियाँ
प्रगतिशीलता का छद्म
घर पर मौज-मजे, दारू-खोरी
निर्बल के श्रम सामर्थ्य का
बुनना गहन संजाल
न कर पाओगे यह सब
तो कैसे छप पाओगे
महत्वपूर्ण, प्रतिष्ठित
पत्र-पत्रिकाओं में?
क्योंकर कोई, बेमतलब
तुम्हें चढ़ाएगा ऊपर?
अब
बिता रहा समय
लिख कर कुछ
अण्डबण्ड
काम बड़ी चीज है
खाली दिमाग
शैतान का घर
लेकिन चाहता है आदमी
हर रोज
कुछ खाली समय