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"दफ़्तर से विदाई / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर

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14:33, 30 जनवरी 2017 के समय का अवतरण


इतनी आसानी से
नहीं हो जाता कोई विदा

वह थोड़ा-थोड़ा
जरूर रह जाता है
तुम्हारे साथ

अदृश्य और निराकार

और तुम भी
थोड़ा ही सही

चले जाते हो
दूर तलक साथ-साथ उसके
जो हुआ है
अभी-अभी तुमसे विदा...

(31 दिसंबर, 2014)