भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मन वही फिर गीत गाए / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=दीपक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
मौज के दिन लौट आए !
 
मौज के दिन लौट आए !
  
है पता मुझकोµयहाँ पर
+
है पता मुझको यहाँ पर
 
कुछ नहीं है नित्य फिर भी,
 
कुछ नहीं है नित्य फिर भी,
चाहता मनµप्राण पुलके
+
चाहता मन प्राण पुलके
 
काल के हाथों में गिरवी;
 
काल के हाथों में गिरवी;
 
सूख जायेगी कभी भी
 
सूख जायेगी कभी भी

21:11, 13 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

मन वही फिर गीत गाए,
मौज के दिन लौट आए !

है पता मुझको यहाँ पर
कुछ नहीं है नित्य फिर भी,
चाहता मन प्राण पुलके
काल के हाथों में गिरवी;
सूख जायेगी कभी भी
सोच यह नदिया न बहती,
जिस जगह पर वन कभी था
आज रेगिस्तान-परती ।
इस तरह खुल कर हँसो तुम,
गाल पर भँवरे दिखाए !

सृष्टि यह सुन्दर बनेगी
आँसुओं से हँसी बरसे,
रात को ऐसा सजाओ
जिन्दगी को मौत तरसे !
सृष्टि उसको याद रखती
आग पर जो मुस्कुराता,
इसलिए तो जा रहा हूँ
वेदना को मैं हँसाता ।
यह नहीं संभव समय से
कि मुझे वह भूल जाए ।