भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"संताप / सुप्रिया सिंह 'वीणा'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुप्रिया सिंह 'वीणा' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
{{KKCatAngikaRachna}}
 
{{KKCatAngikaRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
सुमन के दोष बस अतना कि, बगिया में खिली गैलै।
+
सुमन के दोष बस अतना कि बगिया में खिली गैलै।
 
पवन के जोस-तेवर तेॅ सभ्भे मांटी में मिली गैलै।
 
पवन के जोस-तेवर तेॅ सभ्भे मांटी में मिली गैलै।
 
सतैभेॅ तेॅ भला केतना गिरै के अंत कहाँ होतै।
 
सतैभेॅ तेॅ भला केतना गिरै के अंत कहाँ होतै।

15:41, 3 मार्च 2017 के समय का अवतरण

सुमन के दोष बस अतना कि बगिया में खिली गैलै।
पवन के जोस-तेवर तेॅ सभ्भे मांटी में मिली गैलै।
सतैभेॅ तेॅ भला केतना गिरै के अंत कहाँ होतै।
डरी-डरी केॅ ऊ आखिर निडर होये केॅ खड़ा होलै।
सभ्भे के अंत छै निश्चित, अंधरिया रात भी बिततै।
सुक्खोॅ के चाह में पंछी, उड़ी आकाश में गैलै।
समर्पण में तपी केॅ फूल आबेॅ अंगार बनलोॅ छै।
ढोवै कब तक कहो रिश्ता, हृदय संताप बनी गैलै।