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|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
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बच्चा बड़ा हो रहा है धीरे-धीरे
 
समुद्र और पहाड़ों को करता है एकमेक
 
घर को बना देना चाहता है आकाश
 
समेट लेना चाहता है धरती को गोद में
 
भीगना चाहता है पहली बारिश में
 
लगाता है
 
गमले में अमरूद का पेड़
 
सुनता है कहानियाँ
 ढूंढता ढूँढता है पात्र आसपास। 
जाता है शाम बग़ल की छत पर
 
लौटता है
 
साइकिल पर गिटार लिए
 
छेड़ता है
 
कभी कोई प्यारी-सी धुन
 
निकालता है कभी गोलियों की आवाज़।
 
बच्चा
 
अब सचमुच बड़ा हो गया है
 
गिटार और पिस्तौल में
 
कोई फ़र्क़ ही नहीं समझता।
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