भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अक़्स-ए-ख़ुशबू हूँ / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह= }} अक़्स-ए-खुशबू हूँ बिखरने से ना र...) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=परवीन शाकिर | |रचनाकार=परवीन शाकिर | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatGhazal}} | ||
+ | <poem> | ||
− | अक़्स-ए- | + | अक़्स-ए-ख़ुशबू हूँ, बिखरने से न रोके कोई |
− | और बिखर जाऊँ तो, मुझ को | + | और बिखर जाऊँ तो, मुझ को न समेटे कोई |
− | काँप उठती हूँ मैं सोच कर | + | काँप उठती हूँ मैं सोच कर तन्हाई में |
− | मेरे चेहरे पर तेरा नाम | + | मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई |
− | जिस तरह ख़्वाब हो गए मेरे रेज़ा रेज़ा | + | जिस तरह ख़्वाब हो गए मेरे रेज़ा-रेज़ा |
− | इस तरह से, कभी टूट कर, बिखरे कोई | + | इस तरह से, कभी टूट कर, बिखरे कोई |
− | अब तो इस राह से वो शख़्स | + | अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं |
− | अब किस उम्मीद | + | अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई |
− | कोई आहट, कोई | + | कोई आहट, कोई आवाज़, कोई छाप नहीं |
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान है आए कोई | दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान है आए कोई | ||
+ | </poem> |
07:14, 27 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अक़्स-ए-ख़ुशबू हूँ, बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो, मुझ को न समेटे कोई
काँप उठती हूँ मैं सोच कर तन्हाई में
मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई
जिस तरह ख़्वाब हो गए मेरे रेज़ा-रेज़ा
इस तरह से, कभी टूट कर, बिखरे कोई
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई
कोई आहट, कोई आवाज़, कोई छाप नहीं
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान है आए कोई