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"अभी न जाओ प्राण! / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है,
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अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,
प्यास शेष है,<br>
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पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया,
अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,<br>
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श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में,
पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया,<br>
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अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया,
श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में,<br>
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अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,
अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया,<br>
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अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।
अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,<br>
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अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है।
अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।<br>
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प्यास शेष है।
अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है।<br>
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अभी स्पर्श से सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण,
अभी स्पर्श से सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण,<br>
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गल-माला के फूल-फूल में पुलकित कम्पन,
गल-माला के फूल-फूल में पुलकित कम्पन,<br>
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खिसक-खिसक जाता उरोज से अभी लाज-पट,
खिसक-खिसक जाता उरोज से अभी लाज-पट,<br>
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अंग-अंग में अभी अनंग-तरंगित-कर्षण,
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केलि-भवन के तरुण दीप की रूप-शिखा पर,
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अभी शलभ के जलने का उल्लास शेष है।
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अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
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प्यास शेष है।
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अगरु-गंध में मत्त कक्ष का कोना-कोना,<br>
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अगरु-गंध में मत्त कक्ष का कोना-कोना,
सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना,<br>
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सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना,
अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पट<br>
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अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पट
देखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना,<br>
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देखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना,
रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित-<br>
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रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित-
आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है।<br>
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आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,<br>
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अभी लहर तट के आलिंगन में है सोई,<br>
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अलिनी नील कमल के गन्ध गर्भ में खोई,<br>
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अभी लहर तट के आलिंगन में है सोई,
पवन पेड़ की बाँहों पर मूर्छित सा गुमसुम,<br>
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अलिनी नील कमल के गन्ध गर्भ में खोई,
अभी तारकों से मदिरा ढुलकाता कोई,<br>
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पवन पेड़ की बाँहों पर मूर्छित सा गुमसुम,
एक नशा-सा व्याप्त सकल भू के कण-कण पर,<br>
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अभी तारकों से मदिरा ढुलकाता कोई,
अभी सृष्टि में एक अतृप्ति-विलास शेष है।<br>
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एक नशा-सा व्याप्त सकल भू के कण-कण पर,
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,<br>
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अभी सृष्टि में एक अतृप्ति-विलास शेष है।
प्यास शेष है।<br>
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अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
अभी मृत्यु-सी शांति पड़े सूने पथ सारे,<br>
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प्यास शेष है।
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अभी मृत्यु-सी शांति पड़े सूने पथ सारे,
अभी चांदनी के न जगे सपने निंदियारे,<br>
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अभी न उषा ने खोले प्राची के द्वारे,
अभी दूर है प्रात, रात के प्रणय-पत्र में-<br>
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अभी मौन तरु-नीड़, सुप्त पनघट, नौकातट,
बहुत सुनाने सुनने को इतिहास शेष है।<br>
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अभी चांदनी के न जगे सपने निंदियारे,
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,<br>
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अभी दूर है प्रात, रात के प्रणय-पत्र में-
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बहुत सुनाने सुनने को इतिहास शेष है।
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अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
 
प्यास शेष है॥
 
प्यास शेष है॥
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01:24, 8 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है,
प्यास शेष है,

अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,
पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया,
श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में,
अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया,
अभी प्राण-बंसीबट में बज रही बंसुरिया,
अधरों के तट पर चुम्बन का रास शेष है।
अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है।
प्यास शेष है।

अभी स्पर्श से सेज सिहर उठती है, क्षण-क्षण,
गल-माला के फूल-फूल में पुलकित कम्पन,
खिसक-खिसक जाता उरोज से अभी लाज-पट,
अंग-अंग में अभी अनंग-तरंगित-कर्षण,
केलि-भवन के तरुण दीप की रूप-शिखा पर,
अभी शलभ के जलने का उल्लास शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
प्यास शेष है।

अगरु-गंध में मत्त कक्ष का कोना-कोना,
सजग द्वार पर निशि-प्रहरी सुकुमार सलोना,
अभी खोलने से कुनमुन करते गृह के पट
देखो साबित अभी विरह का चन्द्र -खिलौना,
रजत चांदनी के खुमार में अंकित अंजित-
आँगन की आँखों में नीलाकाश शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
प्यास शेष है।

अभी लहर तट के आलिंगन में है सोई,
अलिनी नील कमल के गन्ध गर्भ में खोई,
पवन पेड़ की बाँहों पर मूर्छित सा गुमसुम,
अभी तारकों से मदिरा ढुलकाता कोई,
एक नशा-सा व्याप्त सकल भू के कण-कण पर,
अभी सृष्टि में एक अतृप्ति-विलास शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
प्यास शेष है।

अभी मृत्यु-सी शांति पड़े सूने पथ सारे,
अभी न उषा ने खोले प्राची के द्वारे,
अभी मौन तरु-नीड़, सुप्त पनघट, नौकातट,
अभी चांदनी के न जगे सपने निंदियारे,
अभी दूर है प्रात, रात के प्रणय-पत्र में-
बहुत सुनाने सुनने को इतिहास शेष है।
अभी न जाओ प्राण! प्राण में प्यास शेष है,
प्यास शेष है॥