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"लालटेनें-1 / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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क्योंकि वहाँ जाकर लालटेनें बुझ जाती हैं | क्योंकि वहाँ जाकर लालटेनें बुझ जाती हैं | ||
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वहाँ जाकर आदमी का दम घुट जाता है। | वहाँ जाकर आदमी का दम घुट जाता है। | ||
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10:18, 5 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
रोशनी का नाम लेते ही
याद आता है सूरज
याद आती हैं बिजली की बत्तियाँ और टार्चें
लेकिन अंधे तहख़ानों
और ज़हरीली गैसों से भरे मैनहालों में
उतारी जाती हैं सिर्फ़ लालटेनें
जो अक्सर वहाँ से बुझी और तड़की हुई लौटती हैं
हमें ख़तरों का पता देती हुईं
क्योंकि वहाँ जाकर लालटेनें बुझ जाती हैं
वहाँ जाकर आदमी का दम घुट जाता है।