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"आज तुम्हारा जन्मदिवस / नामवर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँही यह संध्या
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आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँ ही यह संध्या
 
भी चली गई, किंतु अभागा मैं न जा सका
 
भी चली गई, किंतु अभागा मैं न जा सका
 
 
समुख तुम्हारे और नदी तट भटका-भटका
 
समुख तुम्हारे और नदी तट भटका-भटका
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कभी देखता हाथ कभी लेखनी अबन्ध्या ।
  
कभी देखता हाथ कभी लेखनी अबन्ध्या।
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पार हाट, शायद मेल; रंग-रंग गुब्बारे ।
 
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पार हाट, शायद मेल; रंग-रंग गुब्बारे।
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उठते लघु-लघु हाथ,सीटियाँ; शिशु सजे-धजे
 
उठते लघु-लघु हाथ,सीटियाँ; शिशु सजे-धजे
 
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मचल रहे... सोचूँ कि अचानक दूर छ: बजे ।
मचल रहे... सोचूँ कि अचानक दूर छ: बजे।
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पथ, इमली में भरा व्योम,आ बैठे तारे
 
पथ, इमली में भरा व्योम,आ बैठे तारे
  
'सेवा उपवन',पुस्पमित्र गंधवह आ लगा
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'सेवा उपवन', पुष्पमित्र गंधवह आ लगा
 
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मस्तक कंकड़ भरा किसी ने ज्यों हिला दिया ।
मस्तक कंकड़ भरा किसी ने ज्यों हिला दिया।
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हर सुंदर को देख सोचता क्यों मिला हिया
 
हर सुंदर को देख सोचता क्यों मिला हिया
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यदि उससे वंचित रह जाता तुम्हीं-सा सगा।
  
यदि उससे वंचित रह जाता तू...?
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क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऐसा
 
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क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऎसा
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आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा।
 
आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा।
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18:43, 29 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँ ही यह संध्या
भी चली गई, किंतु अभागा मैं न जा सका
समुख तुम्हारे और नदी तट भटका-भटका
कभी देखता हाथ कभी लेखनी अबन्ध्या ।

पार हाट, शायद मेल; रंग-रंग गुब्बारे ।
उठते लघु-लघु हाथ,सीटियाँ; शिशु सजे-धजे
मचल रहे... सोचूँ कि अचानक दूर छ: बजे ।
पथ, इमली में भरा व्योम,आ बैठे तारे

'सेवा उपवन', पुष्पमित्र गंधवह आ लगा
मस्तक कंकड़ भरा किसी ने ज्यों हिला दिया ।
हर सुंदर को देख सोचता क्यों मिला हिया
यदि उससे वंचित रह जाता तुम्हीं-सा सगा।

क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऐसा
आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा।