अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नामवर सिंह }} उनये उनयेभादरे बरखा की जल चादरें फूल दी...) |
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बरखा की जल चादरें | बरखा की जल चादरें | ||
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फूल दीप से जले | फूल दीप से जले | ||
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कि झरती पुरवैया सी याद रे | कि झरती पुरवैया सी याद रे | ||
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मन कुयें के कोहरे सा रवि डूबे के बाद रे। | मन कुयें के कोहरे सा रवि डूबे के बाद रे। | ||
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:::::::भादरे। | :::::::भादरे। | ||
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उठे बगूले घास में | उठे बगूले घास में | ||
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चढ़ता रंग बतास में | चढ़ता रंग बतास में | ||
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हरी हो रही धूप | हरी हो रही धूप | ||
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तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में | तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में | ||
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:::::::घास में। | :::::::घास में। | ||
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19:40, 30 मार्च 2013 के समय का अवतरण
उनये उनये भादरे
बरखा की जल चादरें
फूल दीप से जले
कि झरती पुरवैया सी याद रे
मन कुयें के कोहरे सा रवि डूबे के बाद रे।
भादरे।
उठे बगूले घास में
चढ़ता रंग बतास में
हरी हो रही धूप
नशे-सी चढ़ती झुके अकास में
तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में
घास में।