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अशाश्वत / मंगलेश डबराल

No change in size, 09:54, 18 जून 2020
जब बर्फ़ पिघलना शुरू हुई तो वह पानी की तरह
हल्की चमक लिए हुए कुछ दूर तक बहता हुआ दिखा
फिर अप्रैल के महीने में ज़ऱाज़रा-सी एक छुवन जिसके नतीज़े नतीजे में होंठ पैदा होते रहे
बरसात के मौसम में वह तरबतर होना चाहता था
बारिशें बहुत कम हो चली थीं और पृथ्वी उबल रही थी
अक्टूबर की हवा में जैसा कि होता है
वह किसी टहनी की तरह नर्म और नाज़ुक हो गया
जिसे कोई तोडऩा तोड़ना चाहता तो यह बहुत आसान था
मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि यह प्रेम है
पतझड़ के आते ही वह इस तरह दिखेगा
जैसे किसी पेड़ से गिरा हुआ पीला पत्ता।
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