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"शाख़ों से जो तोड़ लिया फूलों का मज़ा गया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | शाख़ों से जो तोड़ लिया फूलों का मज़ा | + | शाख़ों से जो तोड़ लिया फूलों का मज़ा गया |
गुस्से में तो बोल दिया बातों का मज़ा गया। | गुस्से में तो बोल दिया बातों का मज़ा गया। | ||
− | चाहें जितनी हसीं रात हो, चाहे रंगरंगीली | + | चाहें जितनी हसीं रात हो, चाहे रंगरंगीली |
रूठा यार न माने तो रातों का मज़ा गया। | रूठा यार न माने तो रातों का मज़ा गया। | ||
− | मधुर-मधुर ख़्वाबों में मैंने क्या-क्या देखा था | + | मधुर-मधुर ख़्वाबों में मैंने क्या-क्या देखा था |
आँख खुली मीठे-मीठे सपनों का मज़ा गया। | आँख खुली मीठे-मीठे सपनों का मज़ा गया। | ||
− | वक़्त़ के नाज़ुक पंखों को जब छुओ तो हल्के से | + | वक़्त़ के नाज़ुक पंखों को जब छुओ तो हल्के से |
नर्म-नर्म एहसास न हो गीतों का मज़ा गया। | नर्म-नर्म एहसास न हो गीतों का मज़ा गया। | ||
− | प्यार के आगे हर दौलत मिट्टी-सी लगती है | + | प्यार के आगे हर दौलत मिट्टी-सी लगती है |
प्यार न हो तो कई-कई जन्मों का मज़ा गया। | प्यार न हो तो कई-कई जन्मों का मज़ा गया। | ||
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17:23, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
शाख़ों से जो तोड़ लिया फूलों का मज़ा गया
गुस्से में तो बोल दिया बातों का मज़ा गया।
चाहें जितनी हसीं रात हो, चाहे रंगरंगीली
रूठा यार न माने तो रातों का मज़ा गया।
मधुर-मधुर ख़्वाबों में मैंने क्या-क्या देखा था
आँख खुली मीठे-मीठे सपनों का मज़ा गया।
वक़्त़ के नाज़ुक पंखों को जब छुओ तो हल्के से
नर्म-नर्म एहसास न हो गीतों का मज़ा गया।
प्यार के आगे हर दौलत मिट्टी-सी लगती है
प्यार न हो तो कई-कई जन्मों का मज़ा गया।