भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"त्रिताल / शंख घोष / सुलोचना वर्मा / शिव किशोर तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=शंख घोष }} Category:बांगला <poem> तुम्ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
मद्य पीकर तो मत्त होते सब
 
मद्य पीकर तो मत्त होते सब
 
सिर्फ़ कवि ही होता है अपने दम पर मत्त्त।
 
सिर्फ़ कवि ही होता है अपने दम पर मत्त्त।
 
 
(मूल शीर्षक - वही, प्रकाशन-तिथि की सूचना अभी अप्राप्त)
 
  
 
'''मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा और शिव किशोर तिवारी'''
 
'''मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा और शिव किशोर तिवारी'''

20:53, 6 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: शंख घोष  » त्रिताल / शंख घोष / सुलोचना वर्मा

तुम्हारा कोई धर्म नहीं है, सिर्फ़
जड़ से कसकर पकड़ने के सिवाय

तुम्हारा कोई धर्म नहीं है, सिर्फ़
सीने पर कुठार सहन करने के सिवाय

पाताल का मुख अचानक खुल जाने की स्थिति में
दोनों ओर हाथ फैलाने के सिवाय

तुम्हारा कोई धर्म नहीं है,
इस शून्यता को भरने के सिवाय।

श्मशान से फेंक देता है श्मशान
तुम्हारे ही शरीर को टुकड़ों में
दुः समय तब तुम जानते हो
ज्वाला नहीं, जीवन बुनता है जरी।

तुम्हारा कोई धर्म नहीं है उस वक़्त
प्रहर जुड़ा त्रिताल सिर्फ गुँथा
मद्य पीकर तो मत्त होते सब
सिर्फ़ कवि ही होता है अपने दम पर मत्त्त।

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा और शिव किशोर तिवारी

(कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - त्रिताल)