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कितनी ही पीड़ाएँ हैं  | कितनी ही पीड़ाएँ हैं  | ||
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जिनके लिए कोई ध्वनि नहीं  | जिनके लिए कोई ध्वनि नहीं  | ||
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ऐसी भी होती है स्थिरता  | ऐसी भी होती है स्थिरता  | ||
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जो हूबहू किसी दृश्य में बंधती नहीं    | जो हूबहू किसी दृश्य में बंधती नहीं    | ||
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ओस से निकलती है सुबह    | ओस से निकलती है सुबह    | ||
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मन को गीला करने की जि़म्मेदारी उस पर है  | मन को गीला करने की जि़म्मेदारी उस पर है  | ||
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शाम झाँकती है बारिश से  | शाम झाँकती है बारिश से  | ||
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बचे-खुचे को भिगो जाती है  | बचे-खुचे को भिगो जाती है  | ||
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धूप धीरे-धीरे जमा होती है  | धूप धीरे-धीरे जमा होती है  | ||
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क़मीज़ और पीठ के बीच की जगह में  | क़मीज़ और पीठ के बीच की जगह में  | ||
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रह-रहकर झुलसाती है  | रह-रहकर झुलसाती है  | ||
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माथा चूमना  | माथा चूमना  | ||
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किसी की आत्मा चूमने जैसा है  | किसी की आत्मा चूमने जैसा है  | ||
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कौन देख पाता है  | कौन देख पाता है  | ||
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आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते  | आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते  | ||
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दुख के लिए हमेशा तर्क तलाशना  | दुख के लिए हमेशा तर्क तलाशना  | ||
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एक ख़राब किस्म की कठोरता है  | एक ख़राब किस्म की कठोरता है  | ||
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22:38, 28 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
कितनी ही पीड़ाएँ हैं
जिनके लिए कोई ध्वनि नहीं
ऐसी भी होती है स्थिरता
जो हूबहू किसी दृश्य में बंधती नहीं 
ओस से निकलती है सुबह 
मन को गीला करने की जि़म्मेदारी उस पर है
शाम झाँकती है बारिश से
बचे-खुचे को भिगो जाती है
धूप धीरे-धीरे जमा होती है
क़मीज़ और पीठ के बीच की जगह में
रह-रहकर झुलसाती है
माथा चूमना
किसी की आत्मा चूमने जैसा है
कौन देख पाता है
आत्मा के गालों को सुर्ख़ होते
दुख के लिए हमेशा तर्क तलाशना
एक ख़राब किस्म की कठोरता है
	
	