"भैया से कहियो री भाभी / ब्रजमोहन" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजमोहन |संग्रह=दुख जोड़ेंगे हम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
छोड़ें री मोहे समझाना कुछ करके दिखाएँ मोरे भैया ... | छोड़ें री मोहे समझाना कुछ करके दिखाएँ मोरे भैया ... | ||
− | + | केहू से कहें हम मन की | |
− | + | मन में हमारे जन-जन की | |
− | + | पढ़-लिख फटे है कलेजा | |
− | + | नस-नस भैया के तन की | |
मार-मार मन को री भाभी कहीं मर नहीं जाएँ मोरे भैया ... | मार-मार मन को री भाभी कहीं मर नहीं जाएँ मोरे भैया ... | ||
− | + | खो गया री सारा अपनापन | |
− | + | हुआ है पराया घर-आँगन | |
− | + | आँसुओं में डूबी ज़िन्दगानी | |
− | + | कैसे-कैसे दुख की कहानी | |
घुट-घुट रोए हैं अकेले कभी हँस नहीं पाए मोरे भैया ... | घुट-घुट रोए हैं अकेले कभी हँस नहीं पाए मोरे भैया ... | ||
− | + | भाभी तोरा चाँद-जैसा आना | |
− | + | आके फूल-जैसा मुरझाना | |
− | + | गूँगे पेड़-जैसा तोरा मुखड़ा | |
− | + | है री किस छाँव का दुखड़ा | |
चाहे तोसे आँख मिलाना पर सर ही झुकाएँ मोरे भैया ... | चाहे तोसे आँख मिलाना पर सर ही झुकाएँ मोरे भैया ... | ||
− | + | भाभी ये हमारे सब सपने | |
− | + | मरके भी होंगे नहीं अपने | |
− | + | भैया को कैसे समझाएँ | |
− | + | जिएँ चाहे हम मर जाएँ | |
फूँक दें अन्धेरा सारे घर का ज़रा अग्नि दिखाएँ मोरे भैया ... | फूँक दें अन्धेरा सारे घर का ज़रा अग्नि दिखाएँ मोरे भैया ... | ||
</poem> | </poem> |
01:54, 17 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
भैया से कहियो री भाभी लड़ना सिखाएँ मोरे भैया...
छोड़ें री मोहे समझाना कुछ करके दिखाएँ मोरे भैया ...
केहू से कहें हम मन की
मन में हमारे जन-जन की
पढ़-लिख फटे है कलेजा
नस-नस भैया के तन की
मार-मार मन को री भाभी कहीं मर नहीं जाएँ मोरे भैया ...
खो गया री सारा अपनापन
हुआ है पराया घर-आँगन
आँसुओं में डूबी ज़िन्दगानी
कैसे-कैसे दुख की कहानी
घुट-घुट रोए हैं अकेले कभी हँस नहीं पाए मोरे भैया ...
भाभी तोरा चाँद-जैसा आना
आके फूल-जैसा मुरझाना
गूँगे पेड़-जैसा तोरा मुखड़ा
है री किस छाँव का दुखड़ा
चाहे तोसे आँख मिलाना पर सर ही झुकाएँ मोरे भैया ...
भाभी ये हमारे सब सपने
मरके भी होंगे नहीं अपने
भैया को कैसे समझाएँ
जिएँ चाहे हम मर जाएँ
फूँक दें अन्धेरा सारे घर का ज़रा अग्नि दिखाएँ मोरे भैया ...