भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सोचो / कैलाश पण्डा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश पण्डा |अनुवादक= |संग्रह=स्प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
एक रिक्त स्थान
+
उभरती हुई
गति देता अंजान
+
एक सुनहरी कल्पना
लहरे बनती
+
अन्तर मन में
भीड़ भरे जीवन में
+
हर श्वास के स्वर में
पा लेना चाहती थाह
+
पलता स्वप्न
अन्ततः प्रेषित होती
+
धड़कन चलती
उन्मुक्त गगन को
+
दृढ़ राह के आधार पर
शांत विराट
+
लौह पथ गामिनी सी
अनन्त की छाया में
+
कंकड़ पत्थर के पठार पर
कुछ करना चाहती
+
जीवन की गति
बंधन से मुक्त
+
तीव्र तराश पर
मानो सर्वत्र हो युक्त
+
गांव, राष्ट्र
संकीर्ण संकायों के
+
पलता विभिन्न आकार प्रकार पर
भ्रम को तोड़
+
सरसती विकटता के मध्य
वह कहती
+
ज्ञान गार्गी
सब मेरे अपने
+
नवंरग लिए नर नीरोह सा
मैं सबको
+
दिवाल के पीछे भी
क्योंकि उसका वेग
+
कोई श्वास लेता
ऊर्ध्वगामी जो होता है।
+
गुनगुना रहा
 +
यापन करता
 +
क्षण-क्षण तुम्हारी तरह
 +
सोचो !
 +
 
 
</poem>
 
</poem>

14:09, 27 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

उभरती हुई
एक सुनहरी कल्पना
अन्तर मन में
हर श्वास के स्वर में
पलता स्वप्न
धड़कन चलती
दृढ़ राह के आधार पर
लौह पथ गामिनी सी
कंकड़ पत्थर के पठार पर
जीवन की गति
तीव्र तराश पर
गांव, राष्ट्र
पलता विभिन्न आकार प्रकार पर
सरसती विकटता के मध्य
ज्ञान गार्गी
नवंरग लिए नर नीरोह सा
दिवाल के पीछे भी
कोई श्वास लेता
गुनगुना रहा
यापन करता
क्षण-क्षण तुम्हारी तरह
सोचो !