"जीवंत प्रकृति / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर
(New page: खिले कँवल से, लदे ताल पर, मँडराता मधुकर~ मधु का लोभी. गुँजित पुरवाई, बहती प...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
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− | खिले कँवल से, लदे ताल पर, | + | {{KKGlobal}} |
− | मँडराता मधुकर~ मधु का लोभी. | + | {{KKRachna |
− | गुँजित पुरवाई, बहती प्रतिक्षण | + | |रचनाकार=लावण्या शाह |
− | चपल लहर, हँस, सँग ~ सँग, | + | }} |
− | हो, ली ! | + | खिले कँवल से, लदे ताल पर,<br> |
− | एक बदलीने झुक कर पूछा, | + | मँडराता मधुकर~ मधु का लोभी.<br> |
− | "ओ, मधुकर, तू , | + | गुँजित पुरवाई, बहती प्रतिक्षण<br> |
− | गुनगुन क्या गाये? | + | चपल लहर, हँस, सँग ~ सँग,<br> |
− | "छपक छप - | + | हो, ली !<br> |
− | मार कुलाँचे,मछलियाँ, | + | एक बदलीने झुक कर पूछा,<br> |
− | कँवल पत्र मेँ, | + | "ओ, मधुकर, तू ,<br> |
− | छिप छिप जायेँ ! | + | गुनगुन क्या गाये?<br> |
− | "हँसा मधुप, रस का वो लोभी, | + | "छपक छप -<br> |
− | बोला, | + | मार कुलाँचे,मछलियाँ,<br> |
− | " कर दो, छाया,बदली रानी ! | + | कँवल पत्र मेँ,<br> |
− | मैँ भी छिप जाऊँ, | + | छिप छिप जायेँ !<br> |
− | कँवल जाल मेँ, | + | "हँसा मधुप, रस का वो लोभी,<br> |
− | प्यासे पर कर दो ये, मेहरबानी !" | + | बोला,<br> |
− | " रे धूर्त भ्रमर, | + | " कर दो, छाया,बदली रानी !<br> |
− | तू,रस का लोभी -- | + | मैँ भी छिप जाऊँ,<br> |
− | फूल फूल मँडराता निस दिन, | + | कँवल जाल मेँ,<br> |
− | माँग रहा क्योँ मुझसे , छाया ? | + | प्यासे पर कर दो ये, मेहरबानी !"<br> |
− | गरज रहे घन - | + | " रे धूर्त भ्रमर,<br> |
− | ना मैँ तेरी सहेली!" | + | तू,रस का लोभी --<br> |
+ | फूल फूल मँडराता निस दिन,<br> | ||
+ | माँग रहा क्योँ मुझसे , छाया ?<br> | ||
+ | गरज रहे घन -<br> | ||
+ | ना मैँ तेरी सहेली!"<br><br> | ||
− | टप, टप, बूँदोँ ने | + | टप, टप, बूँदोँ ने<br> |
− | बाग ताल, उपवन पर, | + | बाग ताल, उपवन पर,<br> |
− | तृण पर, बन पर, | + | तृण पर, बन पर,<br> |
− | धरती के कण क़ण पर, | + | धरती के कण क़ण पर,<br> |
− | अमृत रस बरसाया - | + | अमृत रस बरसाया -<br> |
− | निज कोष लुटाया ! | + | निज कोष लुटाया !<br><br> |
− | अब लो, बरखा आई, | + | अब लो, बरखा आई,<br> |
− | हरितमा छाई ! | + | हरितमा छाई !<br> |
− | आज कँवल मेँ कैद | + | आज कँवल मेँ कैद<br> |
− | मकरँद की, सुन लो | + | मकरँद की, सुन लो<br> |
− | प्रणय ~ पाश मेँ बँधकर, | + | प्रणय ~ पाश मेँ बँधकर,<br> |
हो गई, सगाई !! | हो गई, सगाई !! |
23:53, 28 जून 2008 के समय का अवतरण
खिले कँवल से, लदे ताल पर,
मँडराता मधुकर~ मधु का लोभी.
गुँजित पुरवाई, बहती प्रतिक्षण
चपल लहर, हँस, सँग ~ सँग,
हो, ली !
एक बदलीने झुक कर पूछा,
"ओ, मधुकर, तू ,
गुनगुन क्या गाये?
"छपक छप -
मार कुलाँचे,मछलियाँ,
कँवल पत्र मेँ,
छिप छिप जायेँ !
"हँसा मधुप, रस का वो लोभी,
बोला,
" कर दो, छाया,बदली रानी !
मैँ भी छिप जाऊँ,
कँवल जाल मेँ,
प्यासे पर कर दो ये, मेहरबानी !"
" रे धूर्त भ्रमर,
तू,रस का लोभी --
फूल फूल मँडराता निस दिन,
माँग रहा क्योँ मुझसे , छाया ?
गरज रहे घन -
ना मैँ तेरी सहेली!"
टप, टप, बूँदोँ ने
बाग ताल, उपवन पर,
तृण पर, बन पर,
धरती के कण क़ण पर,
अमृत रस बरसाया -
निज कोष लुटाया !
अब लो, बरखा आई,
हरितमा छाई !
आज कँवल मेँ कैद
मकरँद की, सुन लो
प्रणय ~ पाश मेँ बँधकर,
हो गई, सगाई !!