भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँख में नमी / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योत्स्ना शर्मा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatHaiku}} | {{KKCatHaiku}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
11 | 11 | ||
चले भी आओ! | चले भी आओ! |
18:30, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
11
चले भी आओ!
चातक हुआ मन
न तरसाओ.
12
यूँ तो वीरानी
फैली है चारों ओर
भीतर शोर!
13
आँख में नमी
कहो क्या खलती है?
हमारी कमी!
14
नन्हें क़दम
चलके आओ धूप
मेरे आँगन!
15
बोझ का मारा
फट पड़ता दिल
जैसे बादल!
16
धूप, छाँव में
ख़ुशबू, फूल कभी-
शूल पाँव में!
17
वादे आबाद
बेचैन करती है
आवारा याद!
18
पान-गिलौरी
खूब रंग लाती है
याद निगोड़ी!
19
किसकी याद?
भोर के मुख पर
सुख-संवाद!
20
एक चाहत
सुना गई दुख को
सुख की बात!