भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ओस की बूँद (हाइकु) / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category:हाइकु]] | [[Category:हाइकु]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
− | |||
1 | 1 | ||
− | |||
नदी बनाता | नदी बनाता | ||
− | |||
सोख हवा से नमीं | सोख हवा से नमीं | ||
− | |||
वृद्ध पहाड़। | वृद्ध पहाड़। | ||
− | |||
2 | 2 | ||
− | |||
छीन लेता है | छीन लेता है | ||
− | |||
धनी मेघों से जल | धनी मेघों से जल | ||
− | |||
दानी पहाड़ | दानी पहाड़ | ||
− | |||
3 | 3 | ||
− | |||
अनाम गंध | अनाम गंध | ||
− | |||
बिखेर रही हवा | बिखेर रही हवा | ||
− | + | धान के खेत । | |
− | धान के | + | |
− | + | ||
4 | 4 | ||
− | |||
ओस की बूँद | ओस की बूँद | ||
− | |||
कैक्टस पर बैठी | कैक्टस पर बैठी | ||
− | + | शूली पे सन्त । | |
− | शूली | + | |
− | + | ||
5 | 5 | ||
− | |||
छिड़ा जो युद्ध | छिड़ा जो युद्ध | ||
− | |||
रोयेगी मानवता | रोयेगी मानवता | ||
− | + | हँसेंगे गिद्ध । | |
− | हँसेंगे | + | |
− | + | ||
6 | 6 | ||
− | |||
बिना धूरी की | बिना धूरी की | ||
− | |||
चल रही है चक्की | चल रही है चक्की | ||
− | + | पिसेंगे सब । | |
− | पिसेंगे | + | |
− | + | ||
7 | 7 | ||
− | |||
गंध के बोरे | गंध के बोरे | ||
− | |||
लाता है ढो ढोकर | लाता है ढो ढोकर | ||
− | + | हवा का घोड़ा । | |
− | हवा का | + | |
− | + | ||
8 | 8 | ||
− | |||
धूप में तपा | धूप में तपा | ||
− | |||
पा गया सुर्ख रंग | पा गया सुर्ख रंग | ||
− | + | टीले का टेसू । | |
− | टीले का | + | |
− | + | ||
9 | 9 | ||
− | |||
चीखता रहा | चीखता रहा | ||
− | |||
झील पार चकोर | झील पार चकोर | ||
− | + | निर्मोही चाँद । | |
− | निर्मोही | + | |
− | + | ||
10 | 10 | ||
− | |||
उगने लगे | उगने लगे | ||
− | |||
कंकरीट के वन | कंकरीट के वन | ||
− | + | उदास मन । | |
− | उदास | + | |
− | + | ||
</poem> | </poem> |
18:13, 9 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
1
नदी बनाता
सोख हवा से नमीं
वृद्ध पहाड़।
2
छीन लेता है
धनी मेघों से जल
दानी पहाड़
3
अनाम गंध
बिखेर रही हवा
धान के खेत ।
4
ओस की बूँद
कैक्टस पर बैठी
शूली पे सन्त ।
5
छिड़ा जो युद्ध
रोयेगी मानवता
हँसेंगे गिद्ध ।
6
बिना धूरी की
चल रही है चक्की
पिसेंगे सब ।
7
गंध के बोरे
लाता है ढो ढोकर
हवा का घोड़ा ।
8
धूप में तपा
पा गया सुर्ख रंग
टीले का टेसू ।
9
चीखता रहा
झील पार चकोर
निर्मोही चाँद ।
10
उगने लगे
कंकरीट के वन
उदास मन ।