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+ | उत्तरायण बीता | ||
+ | मरने को तरसे। | ||
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+ | जीवन तप | ||
+ | चुपचाप सहना | ||
+ | कुछ नहीं कहना, | ||
+ | पाई सुगन्ध | ||
+ | जब गुलाब जैसी | ||
+ | काँटों में ही रहना। | ||
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+ | उर में छाले | ||
+ | मुस्कानों पर लगे | ||
+ | हर युग में ताले, | ||
+ | पोंछे न कोई | ||
+ | आँसू जब बहते | ||
+ | रिश्तों के बीहड़ में। | ||
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+ | मन विकल | ||
+ | नयन छलछल | ||
+ | बहते हैं विकल, | ||
+ | कहते कथा | ||
+ | साँझ से भोर तक, | ||
+ | जाग सुनती व्यथा । | ||
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22:45, 23 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
1
सारी ही उम्र
बीती समझाने में
थक गए उपाय,
जो था पास में
वो सब रीत गया
यूँ वक्त बीत गया।
2
ज़हर-बुझे
बाण जब बरसे
भीष्म-मन आहत,
जीना मुश्किल
उत्तरायण बीता
मरने को तरसे।
3
जीवन तप
चुपचाप सहना
कुछ नहीं कहना,
पाई सुगन्ध
जब गुलाब जैसी
काँटों में ही रहना।
4
उर में छाले
मुस्कानों पर लगे
हर युग में ताले,
पोंछे न कोई
आँसू जब बहते
रिश्तों के बीहड़ में।
5
मन विकल
नयन छलछल
बहते हैं विकल,
कहते कथा
साँझ से भोर तक,
जाग सुनती व्यथा ।