"मैतियों के आर्से-रूटाने / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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− | मैतियों =मायके वाले, समारोह, | + | '''मैतियों ='''मायके वाले, समारोह, '''रुटाने'''=विवाह आदि तथा उसके बाद भी मायके आने पर बेटी को विदा के समय दी जाने वाली गुड़ व गेहूं के आटे से बनी मिठाई,'''आर्से=''' भी ऐसे ही बनती है, मात्र गेहूँ के स्थान पर चावल को भिगो ,ओखल में कूटकर बनने वाली स्वादिष्ट उत्तराखंड की विशेष मिठाई , '''थड़िया, चौफुला ,झुमैलो'''- उत्तराखंडी लोकनृत्य, |
− | मांगुल- उत्तराखंडी वैवाहिक लोकगीत | + | '''मांगुल-''' उत्तराखंडी वैवाहिक लोकगीत[ मंगल गीत ] |
− | + | '''डाँदों''' - खलिहानों के चारों ओर बनी पत्थरों की थोड़ी ऊँची किनारियाँ, | |
निन्यारों- झिंगुर, स्वालों- कचौड़ी, मकरैणी- मकर संक्रान्ति, | निन्यारों- झिंगुर, स्वालों- कचौड़ी, मकरैणी- मकर संक्रान्ति, | ||
फुलकंडियों- बच्चों द्वारा उपयोग में लायी काने वाली फूलों की डलिया, | फुलकंडियों- बच्चों द्वारा उपयोग में लायी काने वाली फूलों की डलिया, | ||
− | मसकबाजे- विवाह आदि में बजाया जाने वाला बैगपाइपर बाज़ा, दमों- नगाड़े जैसा उत्तराखंडी वाद्ययंत्र, | + | '''मसकबाजे'''- विवाह आदि में बजाया जाने वाला बैगपाइपर बाज़ा, दमों- नगाड़े जैसा उत्तराखंडी वाद्ययंत्र, |
− | ''' | + | '''थौल-''' मेला, मंडाण - उत्तराखंडी लोकनृत्य ,. '''फुलेरों'''- चैत्र मास में फूल एकत्र कर प्रतिदिन एक मास तक प्रातःकाल देहरियों पर फूल डालने वाले छोटे बच्चे,लय्या= सरसों |
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+ | '''ब्रज-अनुवाद-रश्मि विभा त्रिपाठी''' | ||
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+ | बसंत के बे गीत पुराने कित गए | ||
+ | थड़िया चौफुला फुलेरन के जमाने कित गए? | ||
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+ | ऋतुपति आवत हुतो झलकावत पौधन में कल्ला | ||
+ | अरु बिछावत हुतो डाँडिनि में हरी घास की मखमल | ||
+ | सपन सभा जोरत रहतु हुतो नैनन बीच | ||
+ | मिठाइनि की मिठास भरि देवत ओ थौल़ मेलन बीच | ||
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+ | माँगुल़न के गुंजन सुहावने कित गए? | ||
+ | दादी की लोरिन के जमाने कित गए? | ||
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+ | घूघूती की घू-घू के मीठे सुर | ||
+ | खलिहाननि के दांदों में सूपन की सर्र-सर्र | ||
+ | कोयलरिया की मीठी झंकार हिराई | ||
+ | निन्यारनि की सुघर गुंजार हिराई | ||
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+ | मैतिनि के आर्से अरु रुटाने कित गए? | ||
+ | कंडियाँ, लाल कपड़ा लुभावने कित गए? | ||
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+ | मंडाड़न अरु उमदात झुमेलन की रितु | ||
+ | मकरैणी अरु पंचमी के मेलन की रितु | ||
+ | पापड़िनि, स्वाल़न और फुलकंडिनि की रितु | ||
+ | सजी- धजी थौले़रन तैं छक्क पगडंडिनि की रितु | ||
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+ | मसकबाजे अरु दमौं के साज सुहावने कित गए? | ||
+ | लाल डोली दुलही की, छतर रुआने कित गए? | ||
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+ | सड़कनि के तौ जाल बनि गए | ||
+ | जिनमैं सिग धारे ताल छनि गए | ||
+ | कटि गए चीड़ बांज बुरांस अंयार | ||
+ | हटि गए मन्दिर पुराने अरु घर-दुआर | ||
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+ | मोरे लय्या गेहूँ के खेत न माइत कित गए? | ||
+ | बसन्त के बे गीत पुराने कित गए? | ||
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04:33, 24 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
बसन्त के वो गीत पुराने कहाँ गए?
थड़िया, चौफुला, फुलेरों के जमाने कहाँ गए ?
ऋतुराज आता था झलकाता पौधों में कोंपलें
और बिछाता था डाँडियों में हरी घास की मखमलें
स्वप्न-सभाएँ लगाए रहता था नैनों में
मिष्ठान्नों की मिठासें भर देता था थौल़ मेलों में
माँगुल़ों के गुंजन सुहाने कहाँ गए?
दादी की लोरियों के जमाने कहाँ गए?
घूघूती की घू-घू के मधुर-स्वर
खलिहानों के दांदों में सूपों की सर-सर
कोयल की मधुर झंकार खो गई
निन्यारों की सुंदर गुंजार खो गई
मैतियों के आर्से और रुटाने कहाँ गए?
कंडियाँ, लाल कपड़े लुभावने कहाँ गए?
मंडाड़ों और झूमते झुमेलों का मौसम
मकरैणी और पंचमी के मेलों का मौसम
पापड़ियों, स्वाल़ों और फुलकंडियों का मौसम
सजी-धजी थौले़रों से भरी पगडंडियों का मौसम
मसकबाजे और दमौं के साज सुहाने कहाँ गए?
लाल डोली दुल्हन की, छतर रुलाने कहाँ गए?
सड़कों के तो जाल बन गए
जिनमें सारे धारे ताल छन गए
कट गए चीड़-बांज-बुरांस-अंयार
हट गए मन्दिर पुराने और घर-द्वार
मेरे लय्या-गेहूँ के खेत न जाने कहाँ गए?
बसन्त के वो गीत पुराने कहाँ गए?
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शब्दार्थ:
मैतियों =मायके वाले, समारोह, रुटाने=विवाह आदि तथा उसके बाद भी मायके आने पर बेटी को विदा के समय दी जाने वाली गुड़ व गेहूं के आटे से बनी मिठाई,आर्से= भी ऐसे ही बनती है, मात्र गेहूँ के स्थान पर चावल को भिगो ,ओखल में कूटकर बनने वाली स्वादिष्ट उत्तराखंड की विशेष मिठाई , थड़िया, चौफुला ,झुमैलो- उत्तराखंडी लोकनृत्य,
मांगुल- उत्तराखंडी वैवाहिक लोकगीत[ मंगल गीत ]
डाँदों - खलिहानों के चारों ओर बनी पत्थरों की थोड़ी ऊँची किनारियाँ,
निन्यारों- झिंगुर, स्वालों- कचौड़ी, मकरैणी- मकर संक्रान्ति,
फुलकंडियों- बच्चों द्वारा उपयोग में लायी काने वाली फूलों की डलिया,
मसकबाजे- विवाह आदि में बजाया जाने वाला बैगपाइपर बाज़ा, दमों- नगाड़े जैसा उत्तराखंडी वाद्ययंत्र,
थौल- मेला, मंडाण - उत्तराखंडी लोकनृत्य ,. फुलेरों- चैत्र मास में फूल एकत्र कर प्रतिदिन एक मास तक प्रातःकाल देहरियों पर फूल डालने वाले छोटे बच्चे,लय्या= सरसों
-0-
ब्रज-अनुवाद-रश्मि विभा त्रिपाठी
बसंत के बे गीत पुराने कित गए
थड़िया चौफुला फुलेरन के जमाने कित गए?
ऋतुपति आवत हुतो झलकावत पौधन में कल्ला
अरु बिछावत हुतो डाँडिनि में हरी घास की मखमल
सपन सभा जोरत रहतु हुतो नैनन बीच
मिठाइनि की मिठास भरि देवत ओ थौल़ मेलन बीच
माँगुल़न के गुंजन सुहावने कित गए?
दादी की लोरिन के जमाने कित गए?
घूघूती की घू-घू के मीठे सुर
खलिहाननि के दांदों में सूपन की सर्र-सर्र
कोयलरिया की मीठी झंकार हिराई
निन्यारनि की सुघर गुंजार हिराई
मैतिनि के आर्से अरु रुटाने कित गए?
कंडियाँ, लाल कपड़ा लुभावने कित गए?
मंडाड़न अरु उमदात झुमेलन की रितु
मकरैणी अरु पंचमी के मेलन की रितु
पापड़िनि, स्वाल़न और फुलकंडिनि की रितु
सजी- धजी थौले़रन तैं छक्क पगडंडिनि की रितु
मसकबाजे अरु दमौं के साज सुहावने कित गए?
लाल डोली दुलही की, छतर रुआने कित गए?
सड़कनि के तौ जाल बनि गए
जिनमैं सिग धारे ताल छनि गए
कटि गए चीड़ बांज बुरांस अंयार
हटि गए मन्दिर पुराने अरु घर-दुआर
मोरे लय्या गेहूँ के खेत न माइत कित गए?
बसन्त के बे गीत पुराने कित गए?
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