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"करते सिर्फ प्रतीक्षा / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर
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21:04, 23 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
हम अपनों के मारे
करते सिर्फ प्रतीक्षा
भूखे का है धर्म मिले खाने को रोटी
उसे कहाँ अल्ला-इश्वर से लेना देना
कहाँ खून का मोल समझ पाएँगे वो जो,
पानी जैसा रहे मानते बहा पसीना
भेद-भाव का कचरा
ढोती नित्य अशिक्षा
पाँच वर्ष की बेटी की माँ पूछ रही है
लूटी अस्मत का कारण क्या था पहनावा
जाने कितनी माएँ ये सब बता चुकी हैं
नहीं छलावे से ज्यादा खादी का दावा
झूठी-सी लगती है अब
प्रत्येक समीक्षा
चमक-दमक से इतना प्यार हुआ है हमको
दौड़ रहे हम बने फतिंगे जलती लौ पर
काट रहे हम जीवन-जड़ का हर संसाधन
पूंजीवाद के दल-दल में अपना शव ढोकर
अगले ही दिन भूले पिछले
दिन की दीक्षा
रचनाकाल-28 दिसंबर 2014