भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिन जल्दी जल्दी ढलता है / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है! हो जाय न ...)
 
 
(6 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 12 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
 
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
 +
|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKVID|v=vYgzdqaMMHY}}
 +
<poem>
 +
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
  
 +
हो जाए न पथ में रात कहीं,
 +
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
 +
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
 +
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
  
दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!
+
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
 +
नीड़ों से झाँक रहे होंगे--
 +
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
 +
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
  
 
+
मुझसे मिलने को कौन विकल?
हो जाय न पथ में रात कहीं,
+
मैं होऊँ किसके हित चंचल?--
 
+
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
मंजिल
+
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
 +
</poem>

21:41, 29 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे--
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?--
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!