भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दूर क्षितिज तक / इसाक अश्क" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इसाक अश्क }} दूर क्षितिज तक<br> टेसू वन में बिना धुएँ की<br> ...) |
|||
| (इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
| पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=इसाक अश्क | |रचनाकार=इसाक अश्क | ||
| − | }} | + | }} |
| − | दूर क्षितिज तक | + | {{KKCatKavita}} |
| − | टेसू वन में बिना धुएँ की | + | {{KKCatNavgeet}} |
| − | आग लगाए हैं। | + | <poem> |
| + | दूर क्षितिज तक | ||
| + | टेसू वन में बिना धुएँ की | ||
| + | आग लगाए हैं। | ||
| − | हवा | + | हवा |
| − | हवा में पंख तौल- | + | हवा में पंख तौल- |
| − | इतराती है, | + | इतराती है, |
| − | रात | + | रात |
| − | रात भर जाने क्या-क्या | + | रात भर जाने क्या-क्या |
| − | गाती है, | + | गाती है, |
| − | रस की | + | रस की |
| − | प्रलय-बाढ में जैसे | + | प्रलय-बाढ में जैसे |
| − | सब डूबे-उतराए हैं। | + | सब डूबे-उतराए हैं। |
| − | पत्ते | + | पत्ते |
| − | नृत्य-कथा का | + | नृत्य-कथा का |
| − | मंचन करते हैं, | + | मंचन करते हैं, |
| − | धूल | + | धूल |
| − | शशि पर फूल | + | शशि पर फूल |
| − | बाँह में भरते हैं, | + | बाँह में भरते हैं, |
| − | मौसम ही | + | मौसम ही |
| − | यह नहीं दृष्टि भर | + | यह नहीं दृष्टि भर |
पाहन तक मदिराए हैं। | पाहन तक मदिराए हैं। | ||
| + | </poem> | ||
20:15, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
दूर क्षितिज तक
टेसू वन में बिना धुएँ की
आग लगाए हैं।
हवा
हवा में पंख तौल-
इतराती है,
रात
रात भर जाने क्या-क्या
गाती है,
रस की
प्रलय-बाढ में जैसे
सब डूबे-उतराए हैं।
पत्ते
नृत्य-कथा का
मंचन करते हैं,
धूल
शशि पर फूल
बाँह में भरते हैं,
मौसम ही
यह नहीं दृष्टि भर
पाहन तक मदिराए हैं।

