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"ऋतु जलसे की / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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ऋतु जलसे की | ऋतु जलसे की | ||
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महानगर में | महानगर में | ||
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नदी-किनारे जंगल काँपा | नदी-किनारे जंगल काँपा | ||
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पिछली बार कटे थे महुआ | पिछली बार कटे थे महुआ | ||
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अबकी जामुन की बारी है | अबकी जामुन की बारी है | ||
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पगडंडी पर | पगडंडी पर | ||
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राजा जी के आने की सब तैयारी है | राजा जी के आने की सब तैयारी है | ||
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आगे बडे मुसाहिब | आगे बडे मुसाहिब | ||
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उनने | उनने | ||
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जंगल का हर कोना नापा | जंगल का हर कोना नापा | ||
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बेल चढी है जो बरगद पर | बेल चढी है जो बरगद पर | ||
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आडे आती है वह रथ के | आडे आती है वह रथ के | ||
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हर झाडी काटी जायेगी | हर झाडी काटी जायेगी | ||
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दोनों ओर उगी जो पथ के | दोनों ओर उगी जो पथ के | ||
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आते हैं हर बरस | आते हैं हर बरस | ||
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शाह जी | शाह जी | ||
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नदी सिराने महापुजापा | नदी सिराने महापुजापा | ||
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उधर मडैया जो जोगी की | उधर मडैया जो जोगी की | ||
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उसमें रानी रात बसेंगी | उसमें रानी रात बसेंगी | ||
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वनदेवी का सत लेकर वे | वनदेवी का सत लेकर वे | ||
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अपना कायाकल्प करेंगी | अपना कायाकल्प करेंगी | ||
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महलों में | महलों में | ||
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बज रहे बधावे | बज रहे बधावे | ||
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जंगल ने डर कर मुँह ढाँपा। | जंगल ने डर कर मुँह ढाँपा। | ||
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11:57, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
ऋतु जलसे की
महानगर में
नदी-किनारे जंगल काँपा
पिछली बार कटे थे महुआ
अबकी जामुन की बारी है
पगडंडी पर
राजा जी के आने की सब तैयारी है
आगे बडे मुसाहिब
उनने
जंगल का हर कोना नापा
बेल चढी है जो बरगद पर
आडे आती है वह रथ के
हर झाडी काटी जायेगी
दोनों ओर उगी जो पथ के
आते हैं हर बरस
शाह जी
नदी सिराने महापुजापा
उधर मडैया जो जोगी की
उसमें रानी रात बसेंगी
वनदेवी का सत लेकर वे
अपना कायाकल्प करेंगी
महलों में
बज रहे बधावे
जंगल ने डर कर मुँह ढाँपा।