"पद चिह्न / विजय गौड़" के अवतरणों में अंतर
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+ | बछेन्द्री पाल जिन रास्तों से चढ़ी | ||
+ | भविष्य में जरुरी नहीं | ||
+ | वहां बचे ही रहें वे रास्ते | ||
+ | समुद्र के अंधड़ में पाल खोलकर | ||
+ | जिन लहरों पर की थी यात्राएँ | ||
+ | कोलम्बस ने | ||
+ | उनकी एकदम स्पष्ट पहचान के बिना भी | ||
+ | खेते ही रहे नाव | ||
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+ | रोमांचक कार्यवाहियों में डूबने वाले | ||
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+ | रेतीले रास्तों को पार कर | ||
+ | दौड़ते पशुओं के झुण्ड | ||
+ | ढूँढते ही रहे हरी घास | ||
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+ | अज्ञात, अन्जान जगहों की यात्राओं में | ||
+ | दौड़ती दुनिया | ||
+ | छोड़ती रही है पद चिह्न | ||
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10:54, 18 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
नजमा नाई
तू बाल काट दे भाई
हुई नहीं है भूल,
पानी था ही नहीं नहाने को
चिपचिपाहट मिटाने को
उड़ेल ही लेता वरना
एक न एक लोटा तो
तेरी कैंची से मेरा कोई बैर तो नहीं
.....................
आप बैठे रहें
हिले-डुले नहीं
उलझे हुए बालों में उतरने का
लम्बा अभ्यास है
कैंची और कंघे को,
रास्ता निकल ही जाएगा
जिन जगहों तक पहुॅचने का
कोई रास्ता नहीं होता
उन जगहों तक पहुँचने के होते हैं
ढेरों रास्ते
दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर
ऐसे ही नहीं पहुॅचा तेन्जिंग
बछेन्द्री पाल जिन रास्तों से चढ़ी
भविष्य में जरुरी नहीं
वहां बचे ही रहें वे रास्ते
समुद्र के अंधड़ में पाल खोलकर
जिन लहरों पर की थी यात्राएँ
कोलम्बस ने
उनकी एकदम स्पष्ट पहचान के बिना भी
खेते ही रहे नाव
रोमांचक कार्यवाहियों में डूबने वाले
रेतीले रास्तों को पार कर
दौड़ते पशुओं के झुण्ड
ढूँढते ही रहे हरी घास
अज्ञात, अन्जान जगहों की यात्राओं में
दौड़ती दुनिया
छोड़ती रही है पद चिह्न
सांझी संस्कृतियों के