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"व्यंजन पकाने की विधि / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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− | वह तो होता है | + | वह तो होता है |
− | उससे भी बड़ी चीज वह मन है | + | उससे भी बड़ी चीज वह मन है |
− | जो व्यंजन पकाता है, | + | जो व्यंजन पकाता है, |
− | वह अदृश्य रहता है | + | वह अदृश्य रहता है |
− | स्वाद जो आता है जीभ पर | + | स्वाद जो आता है जीभ पर |
− | जान वह कैसे यह लेता है, | + | जान वह कैसे यह लेता है, |
− | किस मन से व्यंजन पकाया गया। | + | किस मन से व्यंजन पकाया गया। |
− | सामग्री , वह तो सोची होगी | + | सामग्री , वह तो सोची होगी |
− | सामग्री बिन व्यंजन | + | सामग्री बिन व्यंजन |
− | यह तो सुना नहीं, | + | यह तो सुना नहीं, |
− | हाँ वह भी कैसे पकाई | + | हाँ वह भी कैसे पकाई गई |
− | यह महत्वपूर्ण है। | + | यह महत्वपूर्ण है। |
− | अंत तब यही होगा स्वाद का | + | अंत तब यही होगा स्वाद का |
− | कैसे जुटाये गये | + | कैसे जुटाये गये |
सामग्री व्यंजन विधियाँ। | सामग्री व्यंजन विधियाँ। | ||
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18:31, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
व्यंजन पकाने की विधियाँ कई हैं
व्यंजन भी कई हैं
ढेरों व्यंजनों के
पर, व्यंजन विधियों को चकमा देकर
कब और कैसे स्वाद को
मधुर तिक्त करते हैं
यही चमत्कार है।
चाहें तो हम इसे रहस्य भी कह लें।
हाथों का जस
वह तो होता है
उससे भी बड़ी चीज वह मन है
जो व्यंजन पकाता है,
वह अदृश्य रहता है
स्वाद जो आता है जीभ पर
जान वह कैसे यह लेता है,
किस मन से व्यंजन पकाया गया।
सामग्री , वह तो सोची होगी
सामग्री बिन व्यंजन
यह तो सुना नहीं,
हाँ वह भी कैसे पकाई गई
यह महत्वपूर्ण है।
अंत तब यही होगा स्वाद का
कैसे जुटाये गये
सामग्री व्यंजन विधियाँ।