"मन की बात / राहुल कुमार 'देवव्रत'" के अवतरणों में अंतर
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<poem> | <poem> | ||
कदमों की आहट है मादक | कदमों की आहट है मादक | ||
− | मादक है पायल की छम छम | + | मादक है पायल की छम-छम |
है लोच भरी बंकिम दृष्टि | है लोच भरी बंकिम दृष्टि | ||
बातें भी तेरी भावप्रवण | बातें भी तेरी भावप्रवण | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
निष्कपट प्रेम आतुर प्रेमी | निष्कपट प्रेम आतुर प्रेमी | ||
तुझको देता है आमंत्रण | तुझको देता है आमंत्रण | ||
+ | |||
ऐसा सुनता जब तुम आते | ऐसा सुनता जब तुम आते | ||
हो जाते हैं पट सतरंगी | हो जाते हैं पट सतरंगी | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 23: | ||
क्या हवा चली है सनन सनन | क्या हवा चली है सनन सनन | ||
स्वीकार करो तुम आमंत्रण | स्वीकार करो तुम आमंत्रण | ||
+ | |||
मेरे प्रदेश में तब आना | मेरे प्रदेश में तब आना | ||
जब हो न कहीं पर हरियाली | जब हो न कहीं पर हरियाली | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 29: | ||
होगी सूखी पत्ती डाली | होगी सूखी पत्ती डाली | ||
तब तुम आना री तन्वंगी | तब तुम आना री तन्वंगी | ||
− | री कोमलमन री श्याम वदन | + | री कोमलमन .. री श्याम वदन |
है तुम्हें अभी से आमंत्रण | है तुम्हें अभी से आमंत्रण | ||
− | ऐसा सुनता | + | |
+ | ऐसा सुनता दुःख की घड़ियां | ||
जब जब आती है जीवन में | जब जब आती है जीवन में | ||
− | क्रूर | + | क्रूर ..कुटिल ..अवसरपरस्त |
तब आग लगाते हैं मन में | तब आग लगाते हैं मन में | ||
ऐसे कुसमय में स्वयं स्वतः | ऐसे कुसमय में स्वयं स्वतः | ||
तुम आना ले चंचल चितवन | तुम आना ले चंचल चितवन | ||
− | मिले ना मिले आमंत्रण | + | मिले ना मिले आमंत्रण |
</poem> | </poem> |
12:49, 3 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
कदमों की आहट है मादक
मादक है पायल की छम-छम
है लोच भरी बंकिम दृष्टि
बातें भी तेरी भावप्रवण
तुम हो प्रिय सभी प्रिय सुभगे
अभिलाषा है स्वच्छंद मिलन
निष्कपट प्रेम आतुर प्रेमी
तुझको देता है आमंत्रण
ऐसा सुनता जब तुम आते
हो जाते हैं पट सतरंगी
उठती है सिहरन सी मन में
हो जाता है मुख सिंदूरी
लो देखो तेरी आहट पा
क्या हवा चली है सनन सनन
स्वीकार करो तुम आमंत्रण
मेरे प्रदेश में तब आना
जब हो न कहीं पर हरियाली
जब होंगे कोयल भी गायब
होगी सूखी पत्ती डाली
तब तुम आना री तन्वंगी
री कोमलमन .. री श्याम वदन
है तुम्हें अभी से आमंत्रण
ऐसा सुनता दुःख की घड़ियां
जब जब आती है जीवन में
क्रूर ..कुटिल ..अवसरपरस्त
तब आग लगाते हैं मन में
ऐसे कुसमय में स्वयं स्वतः
तुम आना ले चंचल चितवन
मिले ना मिले आमंत्रण