भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जयमल नऐ डिजाईन की ना देखीभाली / राजेराम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=राजेराम भारद्वाज
 
|रचनाकार=राजेराम भारद्वाज
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
 
}}
 
}}
 
{{KKCatHaryanaviRachna}}
 
{{KKCatHaryanaviRachna}}

12:34, 8 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण

काव्य विविधा- (अनुक्रमांक- 20)

जवाब - मालदेव का।

जयमल नए डिजाईन की ना देखीभाली, साड़ी तनै कितै मंगवाली ॥ टेक॥

इस साड़ी नै बांधण आली, पार्वती भोले की,
सिंग्लदीप की पदमनी सै, कोए रुक्के-रोले की,
मै साड़ी नै मार दिया, करड़ाई दिन ओले की,
इस साड़ी नै बांधण आली, गंगे माई होणी चाहिए,
के सूर्य की छाया गौरी, चन्द्रमा की रोहणी चाहिए,
नारद का डिगाया ध्यान, वाहे विश्वमोहनी चाहिए,
हूर कोए परिस्तान की, चाहिए बांधण आली,
साड़ी तनै कीतै मंगवाली॥

साड़ी पै भारत का नक्शा, छाप दिया प्राचीन,
शम्भू मनु शतरूपा राणी, अयोध्या का दिखै सीन,
कांशी जी मै लड़का राणी, हरिचंद बिके तीन,
साड़ी ऊपर पंचवटी, फेर राम लखन सिया नार,
सोने के मृग दिखै, राम खेलण जा शिकार,
खिंच रेखा लछमन चाल्या, आया लंका का सरदार,
फेर वा सिता जानकी, रावण नै ठाली,
साड़ी तनै कीतै मंगवाली॥

साड़ी ऊपर जहाज किश्ती, चालै सै अगनबोट,
साड़ी पै दरियाई घोड़ा, गैंडा-हाथी मारै लोट,
बुगले-हंस मुरगाई, सारस की फिरै सै जोट,
टूलै भंवर चमेली-चम्पा, लागरे चमन मै ठाठ,
तोता-मैना चांच मारै, आम जामण और लोह्काट,
मोर-पपैइये कोयल कुकै, माली देखै मींह की बाट,
चमकै बिजली आसमान की, घोर घटा काली,
साड़ी तनै कीतै मंगवाली॥

स्याहमी कड़ै सुखादी साड़ी, आंख्या मै चमकारा लाग्या,
बहम की दवाई कोन्या, गात मै सह्कारा लाग्या,
कैरू-पांडू जुआ खेलै, युधिष्ठिर भी हारया लाग्या,
भरी सभा दरबार के म्हा, दुस्शासन करै था चाला,
द्रोपदी का चीर तारै, रटै थी वा कृष्ण काला,
साड़ी ऊपर नाम लिख्या, राजेराम लुहारी आला,
किसे कारीगर इन्सान की, कोए सै इस्तेमाली,
साड़ी तनै कीतै मंगवाली॥