भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दोहा सप्तक-06 / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=रंजना वर्मा
 
|रचनाकार=रंजना वर्मा
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=दोहा सप्तशती / रंजना वर्मा
 
}}
 
}}
 
{{KKCatDoha}}
 
{{KKCatDoha}}

19:03, 13 जून 2018 के समय का अवतरण

अम्बर में करने लगे, बादल पुनः किलोल।
प्यासी धरती को लगें, मीठे घन के बोल।।

मस्तक पर शोभित करें, गुरु चरणों की धूल।
हरि की कृपा सदा मिले, समय रहे अनुकूल।।

बार बार जो खून का, करता कारोबार।
मानवता का शत्रु है, करो नहीं व्यवहार।।

पाऊँ कवि ऐसा कहाँ, समझे सब संवाद।
चुप सी अधरों पर लगी, कर डाले अनुवाद।।

गंगा मैली हो रही, फिर भी है खामोश।
पापनाशिनी सब कहें, लेकिन किस को होश।।

सहमी सहमी चाँदनी, खोया खोया चाँद।
हरी भरी धरती लगे, क्रुद्ध सिंह की माँद।।

आयी मावस की निशा, छिपा कहीं राकेश।
विकल सितारे ढूंढते, गया कौन से देश।।