"द्रुपद सुता-खण्ड-23 / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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जगती पे ख्यात प्रभु ! तुम दीनबन्धु नाम, | जगती पे ख्यात प्रभु ! तुम दीनबन्धु नाम, |
16:35, 14 जून 2018 के समय का अवतरण
जगती पे ख्यात प्रभु ! तुम दीनबन्धु नाम,
सागर दया के हो दयालु बड़े दानी हो।
ज्ञानगम्य, ध्यानगम्य, अगम, अगोचर हे,
धरा पे अकेले तुम, अनुपम ज्ञानी हो।
मान हो बचाना यदि, स्वजन सुहृद का तो,
छोड़ देते आन निज, अद्भुत मानी हो।
सुनो हे कृपालु कृपा, करो मुझ पर वही,
मान यों बचाओ शत्रु-दल पानी पानी हो।। 67।।
देह है अवश श्लथ, दिखता नहीं है पथ,
धीरज खो हो रही अधीर बड़ी द्रौपदी।
विनती है बार बार, कह रही अश्रु-धार,
शरण तुम्हारी बल-बीर पड़ी द्रौपदी।
शिथिल शरीर लिये, खिंच रही चीर लिये,
पीर जन्मों की मेटने को अड़ी द्रौपदी।
सुन लो पुकार पट, होता तार-तार प्रभु,
कातर ले नयनों में, नीर खड़ी द्रौपदी।। 68
अबला के आँसुओं को, समझ सकेगा कौन,
जान नहीं पायी जिसे, जननी भी जन के।
ममता के आँसुओं को, समता की डोरी लिये,
सदा है पिरोती यह, प्यार भरे मनके।
समझ न आये कभी, दुख के या सुख के हैं,
ऐसे हैं अनोखे दृग-बिंदु ये नयन के।
बरसाते पलकों के, पट हैं सतत जिन्हें,
आओ आँसुओं के सखा, घनश्याम बन के।। 69।।