भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बळती बाजै रै बावळिया / मोहम्मद सद्दीक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 35: पंक्ति 35:
 
अन्तस रै आभै में उमड़ै  
 
अन्तस रै आभै में उमड़ै  
 
बादळ नैणा नीर।
 
बादळ नैणा नीर।
गूंगै गेले गंजलां रो
 
मेट देवो झोड़
 
भूंडा लागै छान-झूंपा
 
आछो लागै खोड़
 
आपै ही मरै तो-
 
कीनै देवो ला दवा।
 
बेगो चालो, जीमो बेटा, चीकणा कवा।
 
 
मानखै नै मार मीठी रसोई बणाई है
 
फूट रोड़ै फूलां थारी सेज सजाई है
 
जीमो-जीमो बेटा माया सामै पगां आई है
 
रोता रेसी लोग थांरै बाप री कमाई है
 
काळजै में लागी
 
थारी लाय बुझा
 
बेगा चालो, जीमो बेटा, चीकणा कवा
 
 
</poem>
 
</poem>

17:51, 14 जून 2018 के समय का अवतरण

बळती बाजै बावळिया
करलै मानखै रो मोल।
दोरो जीणो रै साथीड़ां जठ्ठै
चौड़े-धाड़ै पोल।।

भुजबळ तोल ताण लै मुट्ठी
खारो बणकर जी।
नाजोगे मिनखां नै पड़सी
जीणो जे‘र नै पी
मिनख-जूण री जय बोलणिया
खुल्लम खुल्ला बोल।
दोरो जीणो रै साथीड़ां अट्ठै
चोड़ै धाड़ै पोल।

आंख्यां छोड्यो धरम आपरो
काना पड़ी कुबाण
माथै री मत मांदी पड़गी
न्याय ताकड़ी काण
अलख जगा पतवार थाम लै
नैया डांवां डोल।
बळती बाजै रै बावळिया
कर ले मानखे रो मोल।

मीठी लागै पीड़ पावणी
खारो दुःख रो सीर
अन्तस रै आभै में उमड़ै
बादळ नैणा नीर।