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"आँखों के पृष्ठों पर / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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कहूँगी यदि- | कहूँगी यदि- | ||
तो कटु सत्य होगा, | तो कटु सत्य होगा, | ||
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मेरी आँखों के पृष्ठ, | मेरी आँखों के पृष्ठ, | ||
पीड़ा-संघर्ष | पीड़ा-संघर्ष | ||
− | + | विषाद और हर्ष | |
जैसे अध्याय | जैसे अध्याय | ||
पढ़ने में बीतेंगे | पढ़ने में बीतेंगे | ||
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किन्तु नाटक | किन्तु नाटक | ||
पढ़ने का ही करो | पढ़ने का ही करो | ||
− | + | जागोगे नहीं | |
अध्यायों की खातिर, | अध्यायों की खातिर, | ||
मेरी उनींदी | मेरी उनींदी | ||
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लिखे रातों को | लिखे रातों को | ||
आँखों के पृष्ठों पर | आँखों के पृष्ठों पर | ||
− | लाल अक्षर | + | लाल अक्षर |
तुम्हें लगन तो है; | तुम्हें लगन तो है; | ||
किन्तु पढ़ोगे | किन्तु पढ़ोगे | ||
− | + | तुम उतना बस | |
− | + | पाठ्यक्रम,, | |
− | जग | + | जरूरी जो जग का |
भोग-देह का | भोग-देह का | ||
रोपना, जन्म देना | रोपना, जन्म देना | ||
डूबी अब भी | डूबी अब भी | ||
− | लिखने में | + | लिखने में वेदना |
जानती हूँ मैं- | जानती हूँ मैं- | ||
− | रक्तिम अक्षरों को | + | '''रक्तिम अक्षरों को |
− | कोई नहीं पढ़ेगा ! | + | कोई नहीं पढ़ेगा !''' |
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23:04, 12 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
कहूँगी यदि-
तो कटु सत्य होगा,
प्रिय! सुनो ना !
दृष्टि उठाकर के
प्रेम -कक्षा के
कमजोर विद्यार्थी
तुम हो अभी
मेरी आँखों के पृष्ठ,
पीड़ा-संघर्ष
विषाद और हर्ष
जैसे अध्याय
पढ़ने में बीतेंगे
अनेक वर्ष
और संभव है कि
पूरा जीवन
तुम पढ़ न सको
किन्तु नाटक
पढ़ने का ही करो
जागोगे नहीं
अध्यायों की खातिर,
मेरी उनींदी
मन की कलम ने
लिखे रातों को
आँखों के पृष्ठों पर
लाल अक्षर
तुम्हें लगन तो है;
किन्तु पढ़ोगे
तुम उतना बस
पाठ्यक्रम,,
जरूरी जो जग का
भोग-देह का
रोपना, जन्म देना
डूबी अब भी
लिखने में वेदना
जानती हूँ मैं-
रक्तिम अक्षरों को
कोई नहीं पढ़ेगा !
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