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02:56, 30 जून 2018 के समय का अवतरण
तुम न होते
बुझ जाता दीपक,
सींच नेह से
जला दिया तुमने
चौराहे पर
ओट हाथ की दे दी
आँधी को रोका
फूत्कार-भय त्यागा
नागों को नाथा ।
यह कैसे हो पाता
बिना तुम्हारे
हम जी पाते कैसे
बिना सहारे
दंशित नस -नस
काल सामने
तुमने मन्त्र पढ़े
विष सदा उतारा
-0-