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<poem>
यकीँ मानो कि मुझसे ये नज़ारे बात करते हैं ,
रहूँ खामोश मैं फिर भी तो सारे बात करते हैं ।१
अँधेरी रात होती है कि गम भी साथ चलते हैं ,
अजब हैरान हूँ मुझसे सितारे बात करते हैं ।२
समेटे दर्द बाहों में बही जाती हूँ दरिया सी ,बड़ी तस्कीन दे दे कर किनारे बात करते हैं ।३  कि,इतनी ज़िल्लतें सहकर वो कैसे जी गया होगा ,जला दें जाल नफ़रत का शरारे बात करते हैं ।४  ख़ुदा जाने कि क्या होगा वतन का हाल और अपना ,हमीं से गैर सा होकर हमारे बात करते हैं ।५  करें हम शायरी इतनी कहाँ हम मे लियाक़त थी ,तुम्हारी ही दुआओं के सहारे बात करते हैं ।६  </poem>