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+ | किन्तु, तथापि | ||
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+ | अश्रु बहाता, | ||
+ | न कभी भी रोता; | ||
+ | मातृभूमि के | ||
+ | उर- माल सजाने, | ||
+ | गौरव- मोती | ||
+ | साहस के धागे में | ||
+ | सदा पिरोता | ||
+ | विजय-इतिहास | ||
+ | अपने सारे | ||
+ | यह बलि चढ़ाता | ||
+ | रक्त-संबंध | ||
+ | है राष्ट्र-परिवार | ||
+ | इसका सारा, | ||
+ | भारत का महान | ||
+ | '''वीर जवान''' | ||
+ | कविता नित करे | ||
+ | दण्डवत प्रणाम. | ||
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16:40, 18 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
लौहस्तम्भ-सा
खड़ा एक मानव
हाड़ कँपाती
जो शीत- शिशिर में
बर्फीली हवा,
रात- दोपहर में
चुभती धूप
या अंध तिमिर में
सहता जाता
इसमें भी तो हैं ही
संवेदनाएँ
इसे भी तड़पाती
हैं वेदनाएँ
यद्यपि, कालगति
किन्तु, तथापि
न विचलित होता
अश्रु बहाता,
न कभी भी रोता;
मातृभूमि के
उर- माल सजाने,
गौरव- मोती
साहस के धागे में
सदा पिरोता
विजय-इतिहास
अपने सारे
यह बलि चढ़ाता
रक्त-संबंध
है राष्ट्र-परिवार
इसका सारा,
भारत का महान
वीर जवान
कविता नित करे
दण्डवत प्रणाम.
-0-