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"गीत का मोल / शिवदेव शर्मा 'पथिक'" के अवतरणों में अंतर

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मौन कब तक रहे प्राण की वेदना
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अंधी दुनिया क्या पहचाने मोल किसी के गीत का,
गीत लिख कर उन्हे गुनगुनाते रहे
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दर्द भरे संगीत का।
कंठ तक आह आकर रुकी रह गई
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नयनों की ही तप्त धार पर बहता अंतर प्रीत का,
तार स्वर के मगर झनझनाते रहे
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नेह किसी के गीत का।
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मानस-सागर के मंथन से,
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निकले कवि के गाने रे!
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पिघलाकर पाषाण पिघलती,
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गीतों की मधु-तान रे!
  
नभ नयन में घिरी आंसुओं की घटा
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मन में पल-पल सोता जगता मरघट यह अनरीत का,
आंख भीगी हुई डबडबाने लगी
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दर्द भरे संगीत का।
फिर बिखरने लगी हास की पूर्णिमा
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वेदना चांदनी में नहाने लगी
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रात छूने लगी जब तिमिर तूलिका
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संगीता के प्रणय-गान में,
तारकों के दिए झिलमिलाते रहे
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मृदु आहट का भान रे!
मौन कब तक रहे प्राण की वेदना
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व्यथित उरों का कंपन ही तो,
गीत लिख कर उन्हे गुनगुनाते रहे
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गीतों का निर्माण रे!
  
जुगनुओं ने लिखी सूर्य की एक कथा
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किसे पता है मधुमय-स्वर्णिम बिछड़े हुए अतीत का, दर्द भरे संगीत का।
मन जलाए रहा आरती आग की
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पास आने लगी जब उदासी कभी
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मन जगाए रहा रागिनी फाग की
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भावना भंग की भर गई मस्तियाँ
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वैभव विष में चूर जमाना,
और पीकर नई धुन बनाते रहे
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क्या जाने मधु पान को?
मौन कब तक रहे प्राण की वेदना
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किसने पाया है गागर में,
गीत लिख कर उन्हे गुनगुनाते रहे
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सागर के तूफान को!
  
ओस बनकर कहीं हँस उठी वेदना
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तूफानों के गायक पहिरो हार गीत के जीत का,
दर्द का यह हिमाचल तरल हो गया
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दर्द भरे संगीत का।
बांसुरी जब बजी प्राण के तीर पर
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स्वयं प्याला गरल का सरल हो गया
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काल का व्याल तो फन उठाए रहा
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गीतों का जग मोल न जाने,
आंख तब भी मरण से मिलाते रहे
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कितनी उलझी बात है।
मौन कब तक रहे प्राण की वेदना
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मरुप्रदेश पर बह-बह जाती,
गीत लिख कर उन्हे गुनगुनाते रहे...
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गीतों की बरसात है।
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मानव! कह दे, उत्तर क्या है, ऐसी निठुर अनीति का,
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दर्द भरे संगीत का।
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जग गायक की चिता जला ले,
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जलना भी आसान है।
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फिर भी चिता लपट पर ज्योतित,
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दीपित, जीवित गान है।
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गंगा की लहरों में पावन गायन किसी पुनीत का,
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दर्द भरे संगीत का।
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अंधी दुनिया क्या पहचाने मोल किसी के गीत का,
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दर्द भरे संगीत का।
 
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23:12, 10 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण

अंधी दुनिया क्या पहचाने मोल किसी के गीत का,
दर्द भरे संगीत का।
नयनों की ही तप्त धार पर बहता अंतर प्रीत का,
नेह किसी के गीत का।
 
मानस-सागर के मंथन से,
निकले कवि के गाने रे!
पिघलाकर पाषाण पिघलती,
गीतों की मधु-तान रे!

मन में पल-पल सोता जगता मरघट यह अनरीत का,
दर्द भरे संगीत का।

संगीता के प्रणय-गान में,
मृदु आहट का भान रे!
व्यथित उरों का कंपन ही तो,
गीतों का निर्माण रे!

किसे पता है मधुमय-स्वर्णिम बिछड़े हुए अतीत का, दर्द भरे संगीत का।

वैभव विष में चूर जमाना,
क्या जाने मधु पान को?
किसने पाया है गागर में,
सागर के तूफान को!

तूफानों के गायक पहिरो हार गीत के जीत का,
दर्द भरे संगीत का।

गीतों का जग मोल न जाने,
कितनी उलझी बात है।
मरुप्रदेश पर बह-बह जाती,
 गीतों की बरसात है।

मानव! कह दे, उत्तर क्या है, ऐसी निठुर अनीति का,
 दर्द भरे संगीत का।

जग गायक की चिता जला ले,
जलना भी आसान है।
फिर भी चिता लपट पर ज्योतित,
 दीपित, जीवित गान है।

गंगा की लहरों में पावन गायन किसी पुनीत का,
दर्द भरे संगीत का।

अंधी दुनिया क्या पहचाने मोल किसी के गीत का,
दर्द भरे संगीत का।