भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बोलै नाहीं पिया / मनोज कुमार ‘राही’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज कुमार ‘राही’
+
|रचनाकार=मनोज कुमार 'राही'
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

00:58, 21 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

मुखहूँ न बोलेॅ पिया,
क्या कहूँ सखिया,
काटे नाहीं कटे रैना,
बीते नाहीं बेरी रतिया
मुखहूँ न बोलेॅ

सासु गुजर गइली,
ससुर भइलै परदेशिया,
घरवा में अकेली हम्में
कोय न ननदिया
मुखहूँ न बोलेॅ

कैसे मनाऊँ हाय !
रूठल मोर पिया,
कुछ नाहीं सुझे मोरा,
धड़केला छतिया
मुखहूँ न बोलेॅ

सोलह श्रृंगार करली,
लाख मनाई हारीं,
माने नाहीं मोर पिया,
आंसुवा बहावे अँखिया
मुखहूँ न बोलेॅ

बसंती बयार बहेॅ,
अंगअंग लगावै अगिया,
सोना के यौवनमाँ बीते,
कैसे समझाऊँ पिया
मुखहूँ न बोलेॅ